प्रमोद मिश्रा
रायपुर, 25 जनवरी 2024|पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री महाराज पूज्यश्री बागेश्वर धाम सरकार ने विवेकानंद विद्यापीठ के सामने कोटा स्थित विशाल प्रांगण में निर्मित बागेश्वर धाम के कथा पंडाल में द्वितीय दिवस बुधवार की श्रीराम चरित्र चर्चा एवं जन्म से जनकपुर तक की कथा के अंतर्गत कहा कि भगवान के शरण गए की मरण नहीं होती, जो भगवान के हवाले हो जाता है उसका कभी अहित नहीं होता। राम के सहारे चलने वाले लोगों का, राम के नाम जीने वाले लोगों का कभी बुरा नहीं होता है। मेरे प्रियजनों संकट तो आते हैं, पर संकट के साथ समाधान भी चला आता है। इसीलिए चौथा घाट है शरणागति का, शरणागति का मतलब है केवल तुम या आप। जो भी व्यक्ति गुरु की, भगवान की शरण में रहता है वह जीते-जी स्वर्ग को पाता है, मरने पर भी वह मोक्ष को प्राप्त करता है।
सावधान.. शरणागति तन की नहीं होनी चाहिए, शरणागति मन की होनी चाहिए। गुरु के भगवान के हवाले अपना मन कर दिया, उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। तुलसीदासजी महाराज रामचरित मानस को शरणागति की दृष्टि से कहते हैं। ऐसे व्यक्ति की संगत मत करना जो तुम्हें भगवान से दूर ले जाए। तुम्हें संगत करनी ही है तो ऐसे व्यक्ति की संगत करना जो भगवान से तुम्हारा तार जोड़ दे। संगति कर अच्छे लोगों की दवा मिल जाएगी सभी रोगों की।
रामचरित मानस की छंद पंक्ति- भये प्रगट कृपाला दीनदयाला, कौशल्या हितकारी… के गायन से कथा प्रसंग का शुभारंभ करते उन्होंने कहा कि राम चरित मानस के चार घाट हैं, एक जगह वक्ता हैं याज्ञवलक्य जी और श्रोता हैं भारद्वाज मुनि। इस घाट का नाम है कर्मकांड घाट। दूसरे घाट में जहां कथा हो रही है वहां वक्ता हैं शंकरजी, श्रोता हैं पार्वती माता, इस घाट का नाम है ज्ञानघाट। तीसरी कथा रामायण में जहां हो रही है वह है नीलगिरी पर्वत। जहां वक्ता हैं कागभुषुंडीजी और श्रोता हैं श्रीगरुड़जी महाराज हैं। इस घाट का नाम है उपासना घाट। लेकिन चौथा घाट बड़ा अद्भुत है, जहां वक्ता हैं श्रीतुलसीदास। वहां श्रोता हैं उनका ही मन। इस घाट का नाम है शरणागति घाट।
भगवान की शरणागति में गए पांच भक्तों का उदाहरण देते हुए महाराज जी ने बताया- पहला समर्पण किया मीरा ने, उन्होंने क्या पाया, गोविंद को पाया। खूब परेशानी झेली, पर समर्पण नहीं त्यागा। गोविंद का त्याग नहीं किया। समर्पण का उद्देश्य ये निकला कि अंत में गोविंद को उन्हें अपने में समाहित करना पड़ा। मीरा इस धरती के भगवान के जाने के पांच हजार साल बाद भी उनसे वैसा ही प्रेम करती है कि वह मानती है कि आज भी गोविंद मेरे सामने खड़े हैं। और मैं गोपी बनकर नाच रही हूं। कभी विचार करना अपनी शरणागति पर। जिसमें न मान प्रिय हो, न सम्मान प्रिय हो मुझे तो बस हनुमान प्रिय हो। उसे केवल भगवान प्रिय हो, वही सच्चा समर्पण है।
द्रोपदी ने ऐसी शरणागति ली, उसने बिना विचारे अपने साड़ी के पल्लू को फाड़कर गोविंद की अंगुली में बांध दिया। जो धागे गोविंद की अंगुली में बंधे वे अपने आपको सौभागे मानने लगे लेकिन जो धागे गोविंद की अंगुली में बंध न सके वे अपने-आपको अभागे मानने लगे। गोविंद की भक्तवत्सलता को देखिए दु:शासन द्वारा द्रोपदी के चीर हरण के समय गोविंद स्वयं साड़ी बन गए और द्रोपदी के जीवन की मर्यादा की रक्षा की। जो समर्पित होगा, गोविंद उसकी रक्षा करेंगे।
शरणागति हनुमानजी ने ली, उनकी शरणागति के परिणाम को सब जानते हैं। हर गांव, हर जगह हनुमानजी का मंदिर जरूर मिलेगा। चारों युग प्रताप तुम्हारा… है प्रसिद्ध जगत उजियारा। आज हनुमानजी को सर्वत्र पूजा जाता है। मेरे प्रियजनों अगर हम लोग भगवान की शरणागति लेंगे तो हमारी रक्षा स्वयं भगवान करेंगे।
चौथी शरणागति का आदर्श है विभिषण ने। वे भगवान प्रभुश्रीराम की शरण में आ गए। भगवान ने शरणागति में आते ही तुरंत तिलक लगा कर लंका का राजा घोषित कर दिया। तुम्हरा मंत्र विभिषण माना लंकेश्वर भये सब जग जाना…। भगवान ने मीरा के मान को बढ़ाया, द्रोपदी के चीर को बढ़ाया, हनुमान के प्रताप को बढ़ाया और विभिषण के सम्मान को बढ़ाया प्रभु श्रीराम ने। ये सभी शरणागति के लक्षण हैं
शरणागत होने वाले पांचवे भक्त हैं जिन्होंने भगवान की शरणागति ली, उनका नाम है वाल्मिकीजी महाराज। उल्टा नाम जपहुं जग जाना, वाल्मिकी भए ब्रह्म समाना। उल्टा नाम जप-जप कर भगवान के शरणागत हुए वाल्मिकी ब्रह्म के समान हो गए। उन्होंने उल्टा नाम जप कर भी ब्रह्म स्वरूप भगवान को पा लिया। अगर हम लोग भी रामजी की शरणागति लेंगे तो हमारा कल्याण भी श्रीसीतारामजी महाराज कर देंगे। शरणागति का मतलब है जिसके हो गए, उसी के अनुसार चलो। रामजी के हो गए तो रामजी के अनुसार हम चलें, हनुमानजी के हो गए तो हनुमानजी के अनुसार चलें। हम जिसके हो जाएं उसी के अनुसार चलना, यही शरणागति है।
शरणागति के छह लक्षण हैं- जिसकी शरण में रहो उसी के अनुकूल रहना, जो भगवान को प्रिय ना हो वह ना करना,
उन्होंने कहा कि भगवान श्रीसीतारामजी के चरणारबिंद की कृपा से समस्त जगत में चेतना भी है और समस्त जगत में आधार भी है। उनके चरणारबिंद को हम साष्टांग दंडवत करते हैं। कोई अच्छा वक्ता होता है और कोई अच्छा श्रोता। अच्छे वक्ता और अच्छे श्रोता का एक साथ ऐसा विरला गुण किसी-किसी में ही होता है। कलिकाल में एक देवता हैं, जिनमें सब गुण हैं। सकल गुण निधानं…हनुमानजी महाराज। जो गुणों के निधान हैं, सागर हैं। वे ऐसे वक्ता, उन्होंने रामकथा सुनाई तो माता जानकी का दु:ख भाग गया। कथा सुनाओगे तो दुख भाग जाएगा और व्यथा सुनाओगे तो दु:ख और बढ़ जाएगा। हनुमानजी श्रोता ऐसे हैं- प्रभु चरित सुनबे को रसिया। वे वक्ता भी बहुत बेहतरीन हैं।
राम-राम कहते रहो रखे रहो मन धीर, कारज यही समान के कृपासिंधु रघुबीर। डले रहो दरबार में धक्का-मुक्का धनी के खाओ, एक दिन ऐसा आएगा तुम ही धनी हो जाओ।
मीडिया प्रभारी राजकुमार राठी ने बताया कि मंगल आरती के अवसर पर मुख्य यजमान परिवार बसंत अग्रवाल, लक्ष्मी वर्मा, प्रकाश माहेश्वरी, महेश शर्मा, शंकर भगत, दीपक तिवारी, गणेश अग्रवाल, अजय अग्रवाल, रमेश बंसल, दीनानाथ शर्मा, सुबोध हरितवाल, मनीष शर्मा, रोहित रायमणा, अमृत बिलथरे, अजय अग्रवाल सम्मिलित हुए।