प्रमोद मिश्रा
रायपुर, 08 जनवरी 2023
आदिवासी नेता व भाजपा महामंत्री केदार कश्यप ने बड़ी मांग की है। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 341 में अनुसूचित जातियों के बारे में कहा गया है कि “यदि वे धर्म परिवर्तन करते हैं तो उनको आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। अनुसूचित जनजाति के लिए अनुच्छेद 342 है जिसमें यह प्रावधान नहीं है। 342 में भी यही प्रावधान होना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि देश भर में अनुसूचित जनजाति वर्ग के करीब 20 फीसद लोगों ने मतांतरण कर लिया है। यह लोग जनजातीय रीति-रिवाजों व परंपराओं को नहीं मान रहे हैं, छोड़ चुके है। छत्तीसगढ़ में भी मतांतरण के कारण गांव-गांव में तनाव की स्थिति पैदा हो रही है। उन्होंने बताया कि हमारे आदिवासी समाज के लोग मतांतरण कर चुके लोगों को समझा रहे हैं कि वह सब वापस अपने मूल धर्म में आएं और आदिवासी संस्कृति व परंपरा से जुड़ें। वे आगे बताते है कि आदिवासी भाई–बहन बाहरी लोगों के बहकावे में आ कर, प्रलोभन में आ कर हमारी सांस्कृतिक भावनाओं को समझ नहीं पा रहे हैं।
केदार कश्यप ने बताया कि बस्तर में यह सब कुछ एक षड्यंत्र के तहत हो रहा है। धर्म की राजनीति करना भाजपा का कार्य नही है। हम धर्म की रक्षा का बात करते हैं। उन्होंने कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि कांग्रेस धर्म से धर्म को लड़ाने का कार्य लंबे समय से करते आ रही है और आज नारायणपुर में जो घटना हुई यह उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। किस तरह वहां आदिवासियों को एक दूसरे के खिलाफ किया गया। बस्तर से आदिवासी संस्कृति को समाप्त करने का कुत्सित कार्य कांग्रेस सरकार कर रही है। उन्होंने कहा कि आदिवासी संस्कृति- परंपरा की रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है। हम जिंदगी के अंतिम समय तक आदिवासी और आदिवासी संस्कृति के लिए लड़ेंगे।
केदार कश्यप ने आरक्षण को लेकर केंद्रीय जनजाति सुरक्षा मंच के संरक्षक और हैदराबाद हाइकोर्ट के अधिवक्ता डा. एचके नागू के कथन का हवाला देते हुए कहा कि हमारी एक ही मांग है कि डिलिस्टिंग किया जाए। कुछ आदिवासी मतांतरण कर आरक्षण का लाभ ले रहे हैं और हमारे भोले भाले आदिवासी भाइयों को जनजाति समाज में रहते हुए भी लाभ नहीं मिल रहा है।
केदार कश्यप ने कहा कि मतांतरित हो चुके 20 फीसद लोग 80 फीसद का हक मार रहे हैं। ये लोग अपनी संस्कृति व परंपरा भूल चुके हैं। उल्टा हमें ही बैकवर्ड व जंगल में रहने वाला कहते हैं। उन्होंने केरला स्टेट वर्सेस चंद्रमोहन केस का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ‘अगर जनजाति समाज का कोई व्यक्ति धर्म, संस्कृति व परंपरा छोड़कर दूसरे धर्म को मानता है तो उसे अनुसूचित जाति नहीं कहना चाहिए।’ ऐसे लोगों के लिए हमारी एक ही मांग है। जो आदिवासी, संस्कृति धर्मांतरित हो चुके हैं उनका आरक्षण समाप्त किया जाए।