प्रमोद मिश्रा, 10 जुलाई 2023
छत्तीसगढ़ के कबीरधाम स्थित भोरमदेव मंदिर के लिए एतिहासिक पदयात्रा सावन के पहले सोमवार को हुई। इस पदयात्रा में कई आईएएस, आईपीएस सहित 5000 श्रद्धालु शामिल हुए हैं। यह सभी लोग भोरमदेव मंदिर पहुंचे और भगवान शिव का जलाभिषेक किया। पदयात्रा की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। बूढ़ा महादेव मंदिर से कलेक्टर जनमजेय महोबे ने सुबह करीब 8 बजे इस 17 किमी लंबी पदयात्रा की शुरुआत की। भोरमदेव मंदिर को छत्तीसगढ़ के खजुराहो के नाम से जाना जाता है।
यात्रियों के रुकने और नाश्ते की व्यवस्था
पदयात्रा मार्ग में प्रशासन की ओर से श्रद्धालुओं के लिए विभिन्न स्थानों पर शीतल पेयजल और नाश्ता की व्यवस्था की गई है। इनमें सकरी नदी विद्युत केन्द्र के पास, ग्राम समनापुर, ग्राम बरपेलाटोला, ग्राम रेंगाखारखुर्द, ग्राम कोडार, ग्राम राजानवागांव, ग्राम बाघुटोला, ग्राम छपरी (गौशाला) और भोरमदेव मंदिर परिसर शामिल है। वहीं भोरमदेव मंदिर परिसर के आस-पास कांवरियों के ठहरने के लिए भवन की व्यवस्था भी है। कंवरिया भवन, ग्राम पंचायत के पास बैगा भवन, आदिवासी भवन, शांकम्भरी भवन, ग्राम पंचायत भवन में वाटर प्रुफ टेंट, मड़वा महल मोड़ के पास धर्मशाला भवन में रुक सकते हैं।
प्लास्टिक पर पूरी तरह प्रतिबंध
भोरमदेव मंदिर के आस-पास पॉलीथिन एवं प्लास्टिक युक्त सामग्री का उपयोग नहीं करने की अपील की गई है। कंवरिया और श्रद्धालुओं से प्लास्टिक, चावल, फूल किसी भी मुर्ति पर नहीं डालने को कहा गया है। आने वाले कंवरियों एवं श्रद्धालुओं के लिए अस्थाई शौचालय का निर्माण किया गया है। बैनर पोस्टर से चिन्हांकित किया गया है। सभी श्रद्धालुओं से अपील की गई है कि सभी जगह स्वच्छता से उपयोग करें ताकि गंदगी एवं पर्यावरण प्रदूषण को रोका जा सके।
हेल्प लाइन नंबर किया गया जारी
स्थल में अप्रिय घटना और बच्चों का गुम हो जाने पर मंदिर प्रांगण में पूछताछ केन्द्र की स्थापना की गई है। इसके लिए हेल्प लाइन नंबर जारी किया गया है।
एस.डी.एम. बोड़ला – 75877 05154
तहसीलदार बोड़ला – 9165961970
ना.तहसीलदार बोड़ला – 98937 10385
थाना प्रभारी भोरमदेव – 94242 95795
(पुलिस वाहन) – 112
पटवारी – 91310 11498
एक हजार साल पुराना है भोरमदेव मंदिर
कबीरधाम जिले में मैकल पर्वत समूह से घिरा भोरमदेव मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है। मंदिर की बनावट खजुराहो और कोणार्क के मंदिर के समान है। यहां मुख्य मंदिर की बाहरी दीवारों पर मिथुन मूर्तियां बनी हुई हैं, इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है। मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि गोड राजाओं के देवता भोरमदेव थे और वे भगवान शिव के उपासक थे। शिवजी का ही एक नाम भोरमदेव है। इसके कारण मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा।