गांधी जयंती विशेष: अब जीने की इच्छा छोड़ दी है… अंतिम जन्मदिन से पहले क्यों निराश हो गए थे बापू

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प्रमोद मिश्रा

नई दिल्‍ली, 02 अक्टूबर 2023: आज 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती है। वह अपने अंतिम जन्मदिन पर राजधानी के तीस जनवरी मार्ग पर बिड़ला हाउस में थे। उन्होंने उस दिन उपवास, प्रार्थना और अपने चरखे पर अधिक समय बिताकर जन्मदिन मनाया। दरअसल गांधी जी के लिए जन्मदिन सामान्य दिनों की तरह होता था, वह उस दिन भी अपने काम में लगे रहते थे। 1931 में जब वह लंदन में थे, तब उधर बसे भारतीयों ने उनका जन्मदिन मनाया था। उस दिन, गांधी सोसायटी और इंडियन कांग्रेस लीग ने उन्हें चरखा गिफ्ट में दिया था। इससे पहले 2 अक्टूबर, 1917 को एनी बेसेंट ने बंबई के गोखले हॉल में बापू की तस्वीर का अनावरण किया था। साल 1922, 1923, 1932, 1942 और 1943 में अपने जन्मदिन पर वह जेल में थे। उन्होंने 1942 में जन्मदिन पर आइसक्रीम खाई थी, जेल अधीक्षक ने उन्हें फूलहार भेजे थे। बापू 1924 में जन्मदिन पर उपवास पर थे। यह उपवास हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए रखा गया था।

गांधी जी के लिए अंतिम जन्मदिन की तरह अंतिम दिवाली भी नीरस रही थी। वह 12 नवंबर, 1947 को दीपोत्सव वाले दिन दिल्ली में सबसे शांति और सौहार्द बनाए रखने की अपील कर रहे थे। उस दिन उन्हें कुरुक्षेत्र में शरणार्थियों से मिलने के लिए जाना था, पर वह वहां जा नहीं सके थे। उस दिवाली वाले दिन वह बिड़ला हाउस में कुछ लोगों से मिले थे।
कौन-कौन मिलने आया था बापू से?

महात्मा गांधी के लिए 2 अक्टूबर, 1947 उनका 78वां जन्म दिन अंतिम साबित हुआ। देश की आजादी के बाद यह उनका पहला जन्मदिन था। गांधी जी से उस दिन मिलने के लिए आने वालों में लॉर्ड माउंटबेटन और लेड़ी माउंटबेटन भी थे। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, गृह मंत्री सरदार पटेल, मौलाना आजाद वगैरह भी उनसे मिलने आए थे। उनके साथ छाया की तरह रहने वाले ब्रजकृष्ण चांदीवाला, मनु बहन और उनकी डॉक्टर डॉ. सुशीला नैयर भी बिड़ला हाउस में ही थीं। बापू के कमरे को उनकी सहयोगी मीराबेन ने क्रॉस, ‘हे राम’ और ‘ओम’ शब्दों को लिखकर सजा दिया था। राष्ट्रपिता से पूरे दिन मित्रों और शुभचिंतकों का तांता लगा रहा, जिनमें अन्य देशों के लोग भी शामिल थे। उनमें से कई लोगों ने अपने-अपने देशों के नेताओं की ओर से शुभकामनाएं दीं।

‘जब मेरे चारों ओर इतनी भीषण आग जल रही हो तो मैं अपना जन्मदिन नहीं मनाना चाहता, इसलिए या तो इस आग को बुझा दो, या प्रार्थना करो कि प्रभु मुझे अपने पास बुला लें,’ यही उनका कहना था। उन्होंने आगे कहा, ‘जब भारत में इस तरह का बवाल चल रहा हो तो मुझे एक और जन्मदिन मनाने का विचार पसंद नहीं है।’ वह 9 सितंबर, 1947 को कोलकाता से दिल्ली आए थे। दिल्ली में तब से दंगे रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। पहाड़गंज, किशनगंज. करोल बाग, दरियागंज वगैरह में दंगे हो रहे थे, इंसानियत मर रही थी।

गांधी जी से 2 अक्टूबर 1947 को सैकड़ों लोग मिलने आते रहे। गांधी जी ने उस दिन के बारे में लिखा भी है कि ये बधाइयां हैं या कुछ और। एक जमाना था, जब सब मेरी कही हर बात को मानते थे, पर आज हालत यह है कि मेरी बात कोई सुनता तक नहीं है। मैंने अब ज्यादा जीने की इच्छा छोड़ दी है। मैंने कभी कहा था कि मैं सवा सौ साल तक जिंदा रहूं, लेकिन अब मेरी ज्यादा जीने की इच्छा नहीं रही। दिल्ली के उस अशांत माहौल के बावजूद हिन्दू, मुसलमान और सिख उनके पास उस दिन आ रहे थे।

बापू बीच-बीच में यही कह रहे थे कि “भारत सबका है। यहां पर सब साथ-साथ रहेंगे।” उनसे एक विदेशी पत्रकार मिलने आए और पूछने लगे कि आपने कहा था कि आप 125 साल तक जीना चाहते हैं। इसके जवाब में बापू ने कहा कि मैंने अब ज्यादा जीने की इच्छा छोड़ दी है। मैंने कभी कहा था कि सवा सौ साल तक जिंदा रहूं, लेकिन अब मेरी ज्यादा जीने की इच्छा नहीं रही। वह उन दिनों देश के हालत से बेहद उदास थे।

 

 

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