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बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में फर्जी डॉक्टर से इलाज: पूर्व विधानसभा अध्यक्ष की मौत, 19 साल बाद बड़ा खुलासा – अस्पताल और डॉक्टर दोनों पर एफआईआर, मध्यप्रदेश में भी 7 मौतों से जुड़े तार

डेस्क

बिलासपुर, 21 अप्रैल 2025

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उर्फ डॉ. जान केम के खिलाफ सरकंडा थाने में गंभीर धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। यह कार्रवाई 19 साल पहले 2006 में हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ल की मौत के मामले में की गई है। उनके बेटे डॉ. प्रदीप शुक्ल ने आरोप लगाया है कि फर्जी डॉक्टर के गलत इलाज से उनके पिता की जान गई थी।

 

इस मामले में अपोलो अस्पताल, बिलासपुर को भी आरोपी बनाया गया है। आरोप है कि बिना दस्तावेज सत्यापन के ही आरोपी डॉक्टर को भर्ती कर इलाज की जिम्मेदारी दी गई, जिससे यह गंभीर लापरवाही हुई। एफआईआर में IPC की धारा 420, 465, 466, 468, 471, 304 और 34 के तहत मामला दर्ज किया गया है।

अपोलो अस्पताल की लापरवाही उजागर

जांच में खुलासा हुआ कि अपोलो प्रबंधन ने केवल बायोडाटा के आधार पर डॉक्टर की नियुक्ति की थी। उसके पास न कोई वैध डिग्री थी और न ही विशेषज्ञता के दस्तावेज। यह वही अस्पताल है जिसे तत्कालीन रमन सिंह सरकार ने वीआईपी ट्रीटमेंट के लिए चुना था।

दमोह में भी फर्जी डॉक्टर का कहर

फर्जी डॉक्टर का नेटवर्क सिर्फ छत्तीसगढ़ तक सीमित नहीं था। मध्यप्रदेश के दमोह जिले में भी वह मिशन अस्पताल में ‘लंदन के कार्डियोलॉजिस्ट’ डॉ. एन. जोन केम के नाम से काम कर रहा था। वहां ढाई महीने में 15 हार्ट ऑपरेशन किए गए, जिनमें से 7 मरीजों की मौत हो गई। इस मामले की जांच अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी कर रहा है।

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CMHO ने मांगा स्पष्टीकरण, अस्पताल ने नहीं दिया जवाब

बिलासपुर के CMHO डॉ. प्रमोद तिवारी ने अपोलो प्रबंधन से पूछा कि डॉक्टर की नियुक्ति किस आधार पर की गई थी, लेकिन अस्पताल ने अब तक कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए हैं। इससे विभागीय जांच में भी देरी हो रही है।

सरकार से मिला था इलाज का खर्च

बताया गया कि 2006 में अपोलो अस्पताल में इलाज के लिए राज्य सरकार ने बाकायदा लाखों रुपये स्वीकृत किए थे। लेकिन जिस डॉक्टर के जिम्मे इलाज था, उसकी योग्यता ही फर्जी निकली। अब यह मामला सरकार, स्वास्थ्य विभाग और अस्पताल प्रशासन तीनों के लिए जवाबदेही का विषय बन गया है।

यह मामला स्वास्थ्य व्यवस्था की बड़ी चूक और निजी अस्पतालों की अनदेखी का गंभीर उदाहरण बन गया है। जांच के दायरे में अब कई और पुराने मामलों को भी लिया जा सकता है।

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