प्रमोद मिश्रा
बीजापुर/रायपुर, 09 अप्रैल 2021
आखिरकार सीआरपीएफ के जवान राकेश्वर मन्हास को नक्सलियों ने 5 दिन अपने कब्जे में रखने के बाद छोड़ दिया । ऐसे में सभी जगह यहीं चर्चा है कि आखिर 22 जवानों की जान लेने वाले नक्सली कैसे जवान को इतनी आसानी से छोड़ गए? दरअसल जानकारी के मुताबिक इस कहानी के पीछे असली वजह है सरकार और नक्सलियों के बीच हुई सीक्रेट डील । डील में कहा गया था कि आदिवासी कुंजाम सुक्का जो पुलिस की कैद में हैं उसको छोड़ा जाए तभी जवान राकेश्वर मन्हास को छोड़ा जायेगा ।
इस डील का खुलासा तब हुआ जब राकेश्वर की रिहाई के लिए पत्रकारों की टीम मध्यस्थों के साथ नक्सलियों के गढ़ में पहुंची। बीजापुर मुठभेड़ स्थल से सुरक्षाबलों ने कुंजाम सुक्का नाम के एक आदिवासी को अपने कब्जे में ले लिया था। नक्सलियों ने राकेश्वर सिंह को छोड़ने के बदले इस आदिवासी की रिहाई की शर्त रखी थी। सुरक्षा बलों ने कुंजाम सुक्का को मध्यस्थों के साथ नक्सलियों के पास भेजा। इसका हैंडओवर मिलने के बाद ही नक्सलियों ने राकेश्वर सिंह को पत्रकारों के हवाले किया।
बीजापुर जिले के जोनागुड़ा गांव से 15 किलोमीटर अंदर के इलाके में CRPF के कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह को रखा गया था। गुरुवार दोपहर उन्हें प्रशासन की तरफ से तय मध्यस्थों और पत्रकारों की एक टीम को सौंप दिया गया। 5 दिनों से नक्सलियों के कब्जे में रहे कमांडो को जब नक्सली छोड़ रहे थे, वहां करीब 40 नक्सली मौजूद थे। आस-पास के 20 गांव के लोगों को बुलाया गया था। इन सबके बीच जवान को छोड़ा गया। जब कमांडो की रिहाई हो रही थी तो बीजापुर और सुकमा के पत्रकार गणेश मिश्रा, राजन दास, मुकेश चंद्राकर, युकेश चंद्राकर, शंकर और चेतन वहां मौजूद थे।
बीजापुर के SP कमलोचन कश्यप ने बताया कि सुबह 5 बजे से मध्यस्थों की टीम और पत्रकार बीजापुर से रवाना हुए थे। पत्रकारों में शामिल मुकेश चंद्राकर ने बताया कि हमें जोनागुड़ा आने के लिए कहा गया था। भीषण गर्मी उबड़-खाबड़ रास्तों से होते हुए हम जोनागुड़ा दोपहर तक पहुंचे। बीजापुर जिला मुख्यालय से ये जगह करीब 80 से 85 किलोमीटर दूर है। यहां पहुंचने के बाद और करीब 15 किलोमीटर अंदर हम गए। करीब दो से तीन घंंटे के तनाव भरे माहौल के बाद कमांडो राकेश्वर को छोड़ा गया। शाम 5 से 6 बजे के करीब हम जवान को तर्रेम थाना लेकर आए, जिसके बाद उन्हें पुलिस और CRPF के हवाले किया गया।
बीजापुर में बीते शनिवार को हुई मुठभेड़ के बाद सीआरपीएफ के कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह को नक्सलियों ने अगवा कर लिया था। 5 दिन बाद गुरुवार को रिहा हुए राकेश्वर जब कैंप पहुंचे तो सीआरपीएफ की तरफ से कहा गया कि 210 कोबरा बटालियन के सिपाही राकेश्वर सिंह मनहास सुरक्षित हैं। CRPF के नियमानुसार मनहास की चिकित्सा परीक्षण कराया जा रहा है। इस संबंध में उनके परिवार को सूचित कर दिया गया है। साथ ही उनके परिजन से मोबाइल के माध्यम से मनहास की बात भी करा दी गई है। कमांडो को अपनी बाइक पर बैठाकर लाने वाले पत्रकार शंकर ने बताया उन्होंने जब राकेश्वर से पूछा तो उन्होंने कहा था कोई परेशानी नहीं है, मैं ठीक हूं।
नक्सलियों की यह थी असल मांग
नक्सलियों ने सरकार से मांग रखी थी कि निष्पक्ष मध्यस्थों को भेजें, हम जवान को छोड़ देंगे। जवान की रिहाई के लिए गए पत्रकार युकेश ने बताया कि वहां 20 गांवों के लगभग 2 हजार लोगों की भीड़ थे। ये देखकर हम डर गए थे, क्योंकि कुछ भी हो सकता था। मौजूद गांव के लोगों, पत्रकारों और मध्यस्थों पर नक्सली नजर बनाए हुए थे। मध्यस्थों के पहुंचते ही पहले जवान को नहीं लाया गया। नक्सलियों ने पहले पूरे माहौल को भांपा और इसके बाद जंगल की तरफ कुछ हलचल दिखी। करीब 35 से 40 हथियार बंद नक्सली कमांडो राकेश्वर को लेकर लोगों के बीच आए।