भूपेश टांडिया
रायपुर 25 अगस्त 2021
चित्रसेन साहू पर्वतारोही होने के साथ-साथ राष्ट्रीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल एवम् राष्ट्रीय पैरा स्विमिंग के खिलाड़ी, ब्लेड रनर हैं।उन्होंने विकलांगो के ड्राइविंग लाइसेंस के लिए भी बहुत लंबी लड़ाई लड़ी है और शासन की अन्य नीतियों को अनुकूल बनाने के लिए काम कर रहे हैं।साथ ही चित्रसेन साहू ने 14000 फीट से स्काई डाइविंग करने रिकॉर्ड बनाया है और सर्टिफाइड स्कूबा डायवर है।
उन्होंने कहा कि मेरे लिए पर्वतारोहण का निर्णय आसान नहीं था क्योंकि भारत में अभी तक कोई भी डबल अंप्यूटी पर्वतारोही नहीं है जो पर्वतारोहण करता हो।सबके लिए स्वतंत्रता के मायने क्या है ??? वह बाहर घूमे फिरे ,कोई रोक-टोक ना हो, वह कहीं भी आ जा सके और मुझे घूमना और ट्रैकिंग बहुत पसंद था। 2014 में दुर्घटना में दोनो पैर खोने के बाद मेरे मन में भी यही स्वतंत्रता का भाव था जो मुझे धीरे-धीरे पर्वतारोहण के क्षेत्र में ले गया। शुरुआत छोटे-छोटे छोटे-छोटे यात्रा से ट्रैकिंग में, ट्रेकिंग से माउंटेनियरिंग में तब्दील हुई। जब मैं छोटे-छोटे ट्रैकिंग में जाना शुरू किया तो आत्मविश्वास बढ़ता गया। कृत्रिम पैर होने से आपको एक सामान्य व्यक्ति से 65% ज्यादा ताकत और ऊर्जा लगती है और माउंटेन में जब अधिक ऊंचाई पर होते हैं तो ऑक्सीजन लेवल भी कम होता है और आप बाकी लोग की तुलना में थोड़े धीरे होते हैं तो यह और मुश्किल हो जाता है ऊपर से वातावरण का शरीर पर प्रभाव करने का डर अधिक रहता है किंतु मनोबल ऊंचा रहे तो सब संभव है।
मेरा यह मानना है कि जिंदगी पर्वत के समान है सुख दुख लगा रहता है उतार-चढ़ाव आते रहते हैं किंतु हमें इस एक सामान्य प्रक्रिया मानकर लगातार संघर्ष करना है और आगे बढ़ना है, हम यदि किसी भी समस्या को लेकर समाधान के बारे में एक सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़े तो निराकरण जरूर संभव है।
चित्रसेन साहू ने बताया कि उन्होंने हमेशा से ही अपने लोगों के हक के लिए काम किया है ताकि उन लोगों के साथ भेदभाव ना हो। शरीर के किसी अंग का ना होना कोई शर्म की बात नहीं है ना ये हमारी सफलता के आड़े आता है बस जरूरत है तो अपने अंदर की झिझक को खत्म कर आगे आने की। हम किसी से कम नहीं ना ही हम अलग हैं तो बर्ताव में फर्क क्यों करना हमें दया की नहीं आप सबके साथ एक समान ज़िन्दगी जीने का हक चाहिए ।
“अपने पैरों पर खड़े हैं”
मिशन इंक्लूसन के पीछे हमारा एक मात्र उद्देश्य है सशक्तिकरण और जागरूकता, जो लोग जन्म से या किसी दुर्घटना के बाद अपने किसी शरीर के हिस्से को गवां बैठते हैं उन्हें सामाजिक स्वीकृति दिलाना, ताकि उन्हें समानता प्राप्त हो ना किसी असमानता के शिकार हो तथा बाधारहित वातावरण निर्मित करना और चलन शक्ति को बढ़ाना।