प्रमोद मिश्रा
रायपुर, 02 फरवरी 2022
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के मदनवाड़ा में हुए नक्सली हमले की जांच रिपोर्ट जांच समिति ने मुख्य सचिव अमिताभ जैन को सौंप दी है ।छत्तीसगढ़ के न्यायिक जांच आयोग के इतिहास में मंगलवार को एक रिकॉर्ड बना। रिटायर्ड जस्टिस शंभूनाथ श्रीवास्तव ने मदनवाड़ा कांड न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट मुख्य सचिव अमिताभ जैन को सौंप दी। इस आयोग का गठन जनवरी 2020 में हुआ था। इसको 12 साल पहले राजनांदगांव के मदनवाड़ा के जंगल में हुए नक्सली हमले की जांच करनी थी।
आपको बता दे कि मदनवाड़ा के नक्सली हमले में तत्कालीन एसपी विनोद शंकर चौबे सहित 29 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे। छत्तीसगढ़ में हुए सबसे बड़े और घातक नक्सली हमलों में मदनवाड़ा कांड भी आता है। इस हमले के दौरान कुछ पुलिस अफसरों की भूमिका पर विवाद रहा है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था, घटना के 10 साल बीत जाने के बाद भी कुछ बिंदुओं पर भ्रम की स्थिति है। इसको साफ करने के लिए न्यायिक जांच होनी चाहिए। जस्टिस श्रीवास्तव ने 2021 से इसके लिए बयान आदि लेने और उनके परीक्षण का काम शुरू किया। पिछले सप्ताह जांच का काम पूरा हो गया। उसके बाद मंगलवार को अंतिम रिपोर्ट मुख्य सचिव को सौंप दी गई। मुख्य सचिव अब इसे कैबिनेट के सामने ले आएंगे। वहां से अनुमति मिली तो सरकार विधानसभा के बजट सत्र में इसे सदन में पेश कर देगी। न्यायिक जांच आयोग के निष्कर्षों और सिफारिशों पर एक्शन की जिम्मेदारी अब राज्य सरकार पर है।
मदनवाड़ा में क्या हुआ था उस दिन?
12 जुलाई 2009 की सुबह राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा गांव के पास नक्सलियों ने घात लगाकर पुलिस टीम पर बड़ा हमला किया। इसमें तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे सहित 29 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। इनमें 25 जवान कोरकोटि के जंगल में, 2 मदनवाड़ा में और शहीद साथियों का शव वापस लाने की कवायद में जवानों की शहादत हुई थी। यह पहला मौका था, जब नक्सलियों के हमले में किसी जिले के एसपी की शहादत हुई हो।
आयोग को इन बिंदुओं पर जांच करना था
◆ यह घटना किन परिस्थितियों में हुई थी।
◆ क्या घटना को घटित होने से बचाया जा सकता था।
◆ क्या सुरक्षा की निर्धारित प्रक्रियाओं और निर्देशों का पालन किया गया था।
◆ किन परिस्थितियों में एसपी और अन्य सुरक्षाबलों को उस अभियान में भेजा गया।
◆ एसपी और जवानों के लिए क्या अतिरिक्त बल उपलब्ध कराया गया, अगर हां तो स्पष्ट करना है।
◆ मुठभेड़ में माओवादियों को हुए नुकसान और उनके मरने और घायल होने की जांच।
◆ सुरक्षाबलों के जवान किन परिस्थितियों में मरे अथवा घायल हुए।
◆ घटना से पहले, उसके दौरान और बाद के तथ्य जो उससे संबंधित हों।
◆ क्या राज्य पुलिस और केंद्रीय बलों के बीच समुचित समन्वय रहा है।
सात-आठ साल बाद आई रिपोर्ट
मौजूदा सरकार के समय दो न्यायिक जांच आयोगों ने अपनी रिपोर्ट दी है। इसमें सारकेगुड़ा न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट सात साल बाद मिली। झीरम घाटी न्यायिक जांच की रिपोर्ट भी आठ साल बाद आई। सरकार ने इसे अधूरा बताकर जांच को आगे बढ़ा दिया है। पिछली सरकार में मीना खलखो हत्याकांड की रिपोर्ट 10 साल बाद आई थी।