प्रमोद मिश्रा
रायपुर, 08 नवंबर 2022
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के चर्चित बिल्डर सुबोध सिंघानिया के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया गया है । दो महीने के भीतर आदेश का पालन नहीं करने पर छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता आयोग ने निजी बिल्डर के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया है। आदेश में कहा गया था कि रकम लौटाने के साथ ही अन्य तरह की क्षतिपूर्ति का भी भुगतान करना होगा।
पीड़ित महिला ने बिल्डर से राशि लौटाने के लिए बार-बार निवेदन किया. रकम नहीं लौटाई, तब उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता आयोग छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता आयोग में निजी बिल्डर के खिलाफ दो परिवाद दायर किया. आयोग ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद बिल्डर को बाई-बैक पालिसी के तहत दो महीने के भीतर रकम लौटाने का आदेश दिया. साथ ही जमीन खरीदने वाली महिला को चार साल की मानसिक क्षतिपूर्ति, प्रक्रियागत खर्च और अन्य व्यय मिलाकर करीब 50 हजार रुपए भी बतौर क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया ।
केस डायरी के अनुसार महिला ने 9 अक्टूबर 2013 को निजी बिल्डर से दो प्लॉट बाई-बैक पालिसी के तहत खरीदे थे। योजना के मुताबिक साढ़े तीन से चार साल बाद दोनों प्लाट के विक्रय मूल्य के बराबर राशि को लौटानी थी। पीड़ित महिला ने बिल्डर से राशि लौटाने के लिए बार-बार निवेदन किया। रकम नहीं लौटाई, तब उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता प्रतितोष आयोग में दो परिवाद दायर किया। आयोग ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद बिल्डर को दो महीने के भीतर रकम लौटाने का आदेश दिया।
साथ ही मानसिक क्षतिपूर्ति, प्रक्रियागत खर्च और अन्य व्यय मिलाकर करीब 50 हजार रुपए भी बतौर क्षतिपूर्ति के देने का आदेश दिया। लेकिन निजी बिल्डर ने न तो रकम लौटाई और नहीं ही क्षतिपूर्ति दी। इसके खिलाफ पीड़ित ने फिर से आयोग में परिवाद दायर किया। इस परिवाद की सुनवाई के बाद आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति गौतम चौरड़िया ने निजी बिल्डर निजी बिल्डर के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने का आदेश दिया।
क्या है बाई-बैक पालिसी?
यह एक ऐसी पालिसी है, जिसके तहत बिल्डर किसी मकान या प्लाट को बेच देता है, लेकिन खरीदने वाले को यह आफर देता है कि वह तीन-चार साल में यदि उसे लौटाना चाहता है या बिल्डर को बेचना चाहता है तो वह बेच सकता है। इस प्रकरण में परिवादी ने बिल्डर से दो प्लाट खरीदे। परिवादी ने इसकी रजिस्ट्री भी अपने नाम करा ली। चार साल बाद जब वह पालिसी के तहत अपने दोनों प्लाट बिल्डर सुबोध सिंघानिया को बेचना चाहा तो उन्हें कई तरह की नियम-शर्तें लगाकर प्लाट खरीदने से इंकार कर दिया, फिर परिवादी को घुमाते रहे।
आमतौर पर बिल्डर यह स्कीम इसलिए लाते हैं कि तीन-चार साल बाद जब प्रापर्टी की वैल्यू बढ़ जाएगी तो वह उसे क्रेता से खरीदकर ऊंचे दामों पर फिर से बेच सकता है। लेकिन प्रापर्टी की वैल्यू नहीं बढ़ने पर प्लाट को वापस लेने में आनाकानी करता है।