कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है जीवित्पुत्रिका पर्व, ये है पूजन का शुभ मुहूर्त

छत्तीसगढ़

प्रमोद मिश्रा, 6 अक्टूबर 2023

सनातन धर्म में जीवित्पुत्रिका पर्व का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से संतान की आयु लंबी होती है। इस व्रत में महिलाएं 24 घंटे तक अनवरत निर्जला उपवास रखती हैं। इस व्रत के पुण्य प्रताप से व्रती के बच्चे तेजस्वी ओजस्वी और मेधावी होते हैं।

हिंदू पंचांग के अनुसार, जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. इस व्रत को मुख्य रूप से विवाहित महिलाएं अपने संतान की लंबी उम्र और अच्छी जिंदगी के लिए रखती हैं. जीवित्पुत्रिका का यह व्रत तीन दिनों के लिए रखा जाता है. पहले दिन महिलाएं नहाय खाय करती हैं, दूसरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और तीसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है. इस बार जीवित्पुत्रिका व्रत 6 अक्टूबर यानी आज रखा जा रहा है.

जीवित्पुत्रिका व्रत शुभ मुहूर्त (Jitiya Vrat 2023 Shubh Muhurat)

उदयातिथि के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत इस बार 6 अक्टूबर को ही रखा जाएगा. अष्टमी तिथि 6 अक्टूबर यानी आज सुबह 6 बजकर 34 मिनट से शुरू हो चुकी है और तिथि का समापन 7 अक्टूबर को सुबह 8 बजकर 8 मिनट पर होगा. इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा. आप इस अबूझ मुहूर्त में पूजा कर सकते हैं.

जीवित्पुत्रिका व्रत पूजन विधि (Jitiya Vrat Pujan Vidhi)

जितिया व्रत के पहले दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें. उसके बाद पूजा करें. इसके बाद महिलाएं भोजन ग्रहण करती हैं और उसके बाद पूरे दिन तक वो कुछ भी नहीं खाती. दूसरे दिन सुबह स्नान के बाद महिलाएं पहले पूजा पाठ करती हैं और फिर पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं. इस व्रत का पारण छठ व्रत की तरह तीसरे दिन किया जाता है. पारण से पहले महिलाएं सूर्य को अर्घ्य देती हैं, जिसके बाद ही वह कुछ खाना खा सकती हैं. इस व्रत के तीसरे दिन झोर भात, मरुआ की रोटी और नोनी का साग खाया जाता है.

 

 

 

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जीवित्पुत्रिका व्रत ऐसे हुआ शुरू

महाभारत के युद्ध के समय अपने पिता की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा बेहद नाराज हुए. इसी गुस्से में वह पांडवों के शिविर में घुस गए. शिविर के अंदर उस वक्त 5 लोग सो रहे थे. अश्वत्थामा को लगा कि, वो लोग पांडव हैं और अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उन्होंने उन पांचों को मार डाला. हालांकि असल में वह द्रौपदी की पांच संताने थी. इस बात की खबर जब अर्जुन को मिली तो उन्होंने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उनकी दिव्यमणि छीन ली. अब अश्वत्थामा के गुस्से की आग और बढ़ चली और उन्होंने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को उसके गर्भ में ही नष्ट कर दिया. लेकिन भगवान कृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा की उस अजन्मी संतान को देकर उसे फिर से जीवित कर दिया. मर कर पुनः जीवित होने की वजह से उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया. उसी समय से बच्चों की लंबी उम्र के लिए और मंगल कामना करते हुए जितिया का व्रत रखे जाने की परंपरा की शुरुआत हुई.

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व

जितिया का व्रत हिंदू धर्म में संतान की लंबी उम्र और उसकी मंगल कामना के लिए किया जाता है. माना जाता है कि, इस व्रत को जो भी मां करती है उनकी संतान को लंबी उम्र और जीवन भर किसी भी दुःख और तकलीफ से सुरक्षा मिलती है. जो कोई भी महिला इस व्रत की कथा सुनती है उसे कभी भी अपनी संतान के वियोग का सामना नहीं करना पड़ता है. इसके अलावा घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है.

जीवित्पुत्रिका व्रत की सावधानियां (Jitiya Vrat Precautions)

जितिया व्रत में लहसुन, प्याज और मांसाहार का सेवन वर्जित होता है. व्रत के दौरान मन, वचन और कर्म की शुद्धता आवश्यक है. गर्भवती महिलाओं यग व्रत न रखकर सिर्फ पूजा कर लें तो बेहतर होगा. जिन महिलाओं को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हैं, उन्हें भी यह व्रत नहीं रखना चाहिए.

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