प्रमोद मिश्रा
जौनपुर, 10 दिसंबर 2024
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के केराकत तहसील स्थित डेहरी गांव में कुछ मुस्लिम परिवारों ने अपने नाम के साथ हिंदू टाइटल जोड़ने का अनोखा मामला सामने आया है। यहां के लगभग 30-35 मुस्लिम परिवार अपने नाम के साथ “दुबे”, “तिवारी”, “शुक्ला”, “ठाकुर” और “कायस्थ” जैसे हिंदू उपनाम जोड़ रहे हैं, जिससे गांव में हलचल मच गई है। इन परिवारों का कहना है कि वे अपने पूर्वजों की जड़ों से जुड़ने के लिए यह कदम उठा रहे हैं, जिनके बारे में उन्हें हाल ही में पता चला कि वे हिंदू थे।
पूर्वजों की जड़ें खंगालने की कोशिश
डेहरी गांव के निवासी नौशाद अहमद ने अपना नाम बदलकर “नौशाद अहमद दुबे” रख लिया है। उनका कहना है कि उन्होंने कुछ महीने पहले अपने पूर्वजों के बारे में जानकारी जुटाई और पाया कि उनके पूर्वज हिंदू ब्राह्मण थे। नौशाद के मुताबिक, उनके सात पीढ़ी पहले के पूर्वजों का नाम लाल बहादुर दुबे था, जो बाद में धर्म परिवर्तन कर मुसलमान हो गए थे। यहां तक कि अन्य कई मुस्लिम परिवारों ने भी अपने नामों के साथ हिंदू टाइटल जोड़ने का फैसला किया है। उदाहरण के तौर पर, शेख अब्दुल्ला ने भी अपने नाम के साथ “दुबे” उपनाम जोड़ा है। ये सभी परिवार अब अपनी जड़ों से जुड़ने के लिए यह कदम उठा रहे हैं, और उनका मानना है कि यह उनके पूर्वजों को सम्मान देने का तरीका है।
एनआरसी और सीएए का डर?
कई लोग इस बदलाव को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की बढ़ती चर्चा से जोड़कर देख रहे हैं। डेहरी गांव के कुछ लोग मानते हैं कि एनआरसी के लागू होने के बाद वे अपने परिवार के इतिहास के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते थे, ताकि कोई कानूनी समस्या उत्पन्न न हो। हालांकि, गांव के लोग इस बदलाव के पीछे सिर्फ अपनी जड़ों से जुड़ने की भावना को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं।
इस्लाम को बनाए रखा, लेकिन हिंदू पहचान जोड़ी
गांव के अधिकांश मुस्लिम परिवारों का कहना है कि उन्होंने इस्लाम धर्म को नहीं छोड़ा है, बल्कि अपनी पहचान में बदलाव किया है। उनका मानना है कि यह सिर्फ उनके पूर्वजों के साथ जुड़ने की कोशिश है, जो कभी हिंदू ब्राह्मण और क्षत्रिय थे। वे गर्व के साथ कहते हैं कि वे भारत के नागरिक हैं और अपनी धार्मिक जड़ों से जुड़ना चाहते हैं।
विदेशों से मिल रही धमकियां
इस कदम के बाद, इन परिवारों के रिश्तेदारों को विशेष रूप से दुबई में धमकियां मिल रही हैं। गांव के लोग इस डर को नजरअंदाज कर रहे हैं और कह रहे हैं कि उन्हें धमकियों का कोई असर नहीं है। नौशाद अहमद दुबे ने कहा, “हम अपने पूर्वजों का सम्मान करते हुए यह कदम उठा रहे हैं, और हमें किसी भी धमकी से डर नहीं है। हम अपने परिवार का इतिहास और पहचान बहाल रखना चाहते हैं।”