प्रमोद मिश्रा
बलौदाबाजार/रायपुर, 09 मई 2025
छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के शिक्षा विभाग में बड़े खेल का पर्दाफाश हुआ है । दरअसल, सरकारी नियमों को दरकिनार कर कई कर्मचारियों की अनुकंपा नियुक्ति शिक्षा विभाग में कर दी गई । सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी में पता चला कि पिछली सरकार में वित्त विभाग ने 28 जुलाई 2020 से जो आदेश जारी किया था उसकी अवहेलना की गई है । आपको बताते चलें कि 28 जुलाई 2020 को जारी आदेश के मुताबिक शासकीय पदों पर नियुक्ति के तीन वर्षों में क्रमशः 70, 80 और 90 फीसदी वेतन ही कर्मचारियों को मिलना था । ऐसे में जैसे ही यह आदेश राजपत्र में प्रकाशित हुआ, विभागों में नियमों का परिपालन शुरू हो गया । लेकिन, बलौदाबाजार जिले के शिक्षा विभाग ने इन नियमों को नहीं माना और अनुकंपा नियुक्ति में नियुक्त हुए कर्मचारियों को बिना इस नियम के ही नियुक्तियां दे दी गई । ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सरकार को जो लाखों रुपए का नुकसान हुआ उसका जिम्मेदार कौन है?
एक, दो नहीं बल्कि 29 कर्मचारियों की नियुक्ति
बलौदाबाजार शिक्षा विभाग ने पूरे 29 कर्मचारियों को इस दौरान नियुक्ति प्रमाण पत्र सौंपा लेकिन उनके नियुक्ति प्रमाण पत्र में 28 जुलाई 2020 को जारी आदेश का कोई जिक्र नहीं था, ऐसे में उनको नियुक्ति के समय से ही पूरा वेतन मिलता रहा । विभाग को ख्याल आया और 29 मई 2021 में तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी जिला शिक्षा अधिकारी ने एक पत्र जारी किया और इसपर रोक लगाने का आदेश दिया, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी और 29 कर्मचारियों की बल्ले – बल्ले हो चुकी थी ।
जिम्मेदार कौन?
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या विभाग के जिला शिक्षा अधिकारी, लेखा अधिकारी और सहायक संचालक के बिना जानकारी के ऐसी नियुक्ति आदेश जारी हो जाएगी । जारी नियुक्ति पत्र में तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी सी. एस. ध्रुव के हस्ताक्षर हैं । ऐसे में सवाल उठता है कि जिला शिक्षा अधिकारी को जानकारी नहीं थी या फिर मामला कुछ और है । दरअसल, अंदरखाने से बात यह भी उठ रही है लेनदेन करके नियुक्तियां दे दी गई होंगी और नियमों को दरकिनार कर दिया गया होगा ।
सरकार को लाखों का चूना
जनता की खून पसीने की कमाई से दी गई टैक्स के द्वारा ही सरकारी ख़ज़ाने भर्ती है और उन्हीं पैसों को सरकारी कर्मचारियों को दिया जाता है लेकिन अगर इस तरह से नियमों को ताक पर रखकर नियुक्तियां की जाएगी तो नुकसान सरकार के साथ जनता का भी है । दरअसल, इन नियुक्तियों से लाखों रुपए का नुकसान विभाग के साथ सरकार को हुआ है । ऐसे में अब इस मुद्दे पर जांच की मांग उठ रही है ।
जल्द होगी CM से शिकायत
इस मामले के सामने आने के बाद जल्द ही इस मामले को मुख्यमंत्री के समक्ष रखा जाएगा क्योंकि अभी शिक्षा विभाग मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के पास ही है साथ ही मामले में उच्चस्तरीय जांच की मांग भी की जाएगी जिससे ‘दूध का दूध और पानी का पानी हो’ और दोषी अधिकारी और कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई हो सके ।
क्या कहते हैं जिम्मेदार?
इस मामले में जब हमारी मीडिया24 न्यूज की टीम ने तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी सी एस ध्रुव से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि उस समय के सहायक संचालक अश्वनी तिवारी से बात करिए वहीं बता पाएंगे कि पूरा मामला क्या है?
जब हमने अश्वनी तिवारी से बात की तो उन्होंने कहा कि मैं तो रिटायर हो चुका हूं, अब मैं क्या कर सकता? अश्वनी तिवारी ने एक पत्र भी भेजा जिसमें अनुकंपा नियुक्ति में नियम को लागू करने की बात लिखी है । लेकिन यह पत्र 29 मई 2021 को जारी की गई है लेकिन 28 जुलाई 2020 से 29 मई 2021 के बीच में ही 29 नियुक्तियां हो चुकी थी जिनमें इस नियम का उल्लेख नहीं है । जब इन बातों को अश्वनी तिवारी को बताया गया, तो उन्होंने कहा कि मैं तो रिटायर हो चुका हूं, अब उस समय के तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी सी एस ध्रुव ही कुछ बोलेंगे । अब ऐसे में सवाल उठता है कि जिम्मेदार आखिर कौन है? क्या उस समय के जिला शिक्षा अधिकारी, लेखाधिकारी या फिर सहायक संचालक? खैर दोषी कोई भी लेकिन इतना तो तय है कि 29 कर्मचारियों को नियम के बिना ही नियुक्तियां दे दी गई और शासन को लाखों रुपए का चूना लग गया।
लेनदेन का हो सकता है मामला
अक्सर विभागों में लेनदेन की खबर सामने आते रहती है, ऐसे में इस मामले में भी लेनदेन की बू आ रही गई । क्योंकि एक, दो नियुक्तियों में बात समझ आता कि अधिकारियों के संज्ञान में बात नहीं आई होगी लेकिन इतनी अधिक नियुक्तियों में उनको जानकारी न हो ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता है। ऐसे में माना जा रहा है कि इस मामले में भी लंबी लेन – देन हुई होगी ।
धड़ाधड़ हुआ आदेश जारी
इस विषय में चौंकाने वाली बात यह भी है कि जब विभाग ने 29 मई 2021 को आदेश जारी किया उससे पहले धड़ाधड़ तरीके से तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी सी एस ध्रुव ने अनुकंपा नियुक्ति आदेश जारी कर दिया । ऐसे में सवाल यह भी है कि जब नियमों की जानकारी नहीं थी, तो उतनी तेज गति से नियुक्ति आदेश जारी करने की क्या आवश्यकता थी?