कन्हैया तिवारी की रिपोर्ट
गरियाबंद 04 मई 2021
कोरोना संकटकाल के दौर में अनेक लोग अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रहे है। जिनकी जितनी तारीफ की जाए कम है। समाज को इन्हे सैल्यूट करना चाहिए। असल मायने में ऐसे लोग ही समाज और इंसानियत को जिंदा रखे है। इतनी प्रशंसा करने के पीछे सच्चाई यह कि कोरोना संक्रमित मरीज के शव का अंतिम संस्कार करना जान जोखिम में डालने से कम नही है, क्योकिं अंतिम संस्कार को लेकर अब मृतक के परिजन भी घबराने लगे है। आखिर इन्हें भी तो अपनी मौत का डर है। फिर भी यह कोरोना वारियर्स इस काम को साहस के साथ अंजाम दे रहे है।
ऐसा ही दृश्य प्रतिदिन गरियाबंद जिले में देखने को मिल रहा है। कोरोना के भयावह स्थिति के बीच भी नगर का एक ऐसा साहसी युवा भी है जो इसे अपना नैतिक दायित्व और समाज में अपनी जिम्मेदारी समझते हुए पीपी कीट पहनकर शव का अंतिम संस्कार कर रहा है। ये युवक बिते 11 दिन में सात से अधिक लोगो का अंतिम संस्कार कर चुका है। इसके अलावा अपने दो सहयोगियो के साथ मर्चुरी से शव वाहन तक शव पहुचाने की जोखिम भरी जिम्मेदारी भी यही निभा रहे है। 11 दिन के अंतराल में ये युवक 25 से अधिक शव को वाहन में चढ़ा चुके है। इसमें 15 शव तो ऐसे थे जिसे परिजन भी छुने को तैयार नही थे। इन शव को इन्ही ने मुक्तिधाम तक अंतिम संस्कार के पहुचाया। इनमें से सात शव का तो इस युवक द्वारा ही अंतिम संस्कार भी किया गया। इन सात शव में तीन के परिजन तो आए ही नहीं आए थे और जिन चार शव के परिजन आए थे वे भी अपने परिवार के सदस्य को मुखाग्नि देने हिम्मत नही जुटा पाए। ऐसे में इस युवक ने ही पीपीकीट पहन कर शव को मुखाग्नि दी।
जानकारी के मुताबिक वर्तमान में ये युवक रोज पांच से सात शव को पीपीकीट पहनकर शव वाहन व मुक्तिधाम तक पहुॅचा रहे है और परिजन के ना आने या भय के कारण पीछे हटने पर ये युवक ही जान जोखिम में डालकर शव का अंतिम संस्कार कर रहा है। यह युवक गरियाबंद नगर का मनीष यादव है जो इस जोखिम भरे काम को अपना सामाजिक दायित्व समझ कर पूरा कर रहा है। इसके साथ ही उनके दो सहयोगी भी है जिसमे एक कोपरा का ताराचंद और दूसरा फिंगेश्वर का विक्रम है।
मनीष यादव से बात करने वह बताते है कि बिते 11 दिन से वह लगातार जिला अस्पताल में यह काम कर रहे है। यहां अस्पताल में कार्य कर रहे एक युवक ने ही उसे बताया था कि अस्पताल में कोरोना संक्रमित मरीजो के मृत्यु उपरांत उन्हे मर्चुरी में रखने और शव वाहन तक ले जाने के लिए बार्डबाय की कमी है और इस जोखिम भरे कार्य के लिए कोई तैयार भी नही हो रहा है। जिसके चलते परिजनो और प्रबंधन दोनो का काफी परेशानी हो रही है। यह जानकार मनीष ने अपने निर्णय लिया कि वह इस जोखिम भरे काम के लिए सामने आएगा और उसी दिन से वह इसमें लग गया। मनीष ने बताया कि उसे 11 दिन पूरे हो गए है इस दौरान 15 से अधिक शव को वह मुक्तिधाम तक पहुचा चुके है। परिजनो में भय होने या उनके ना आने पर वह सात शव का रीति रिवाज के साथ अंतिम संस्कार भी कर चुके है। शनिवार को भी पांच शव को उन्होने मुक्तिधाम तक पहुचाया।
शव वाहन चालक जरा भी नही लगाते हाथ
मनीष आगे बताते है कि लोगो में इतना भय है कि कोई बाडी उठाने वाला कोई नही है। परिजन तक आने को तैयार नही होते और आते भी है तो दूरी बनाकर चलते है, कई परिजन तो ऐसे भी जो आना ही नही चाहते, हमे ही अंतिम संस्कार के लिए कह देते है और कुछ परिजन आते है तो वह भी इनते डरे रहते है कि अंतिम संस्कार करने के लिए तैयार नही होते है। वही शव वाहन के चालक भी शव को हाथ तक नही लगाते है, वह भी दूरी बनाकर चलते है। इस स्थिति में मर्चुरी से कोरोना संक्रमित के शव को वाहन में रखने से लेकर उसे मुक्तिधाम ले जाने और अंतिम संस्कार तक का पूरा काम हम तीनो ही करते है। मनीष ने कहा कि वह जानते है कि भयावह स्थिति में वह जोखिम भरा काम कर रहे है और इसमें खतरा भी है लेकिन वह पीपीकीट पहने से लेकर कोरोना संबंधित सभी गाइडलान का पालन रहे है। इस काम को वे अपना नैतिक और सामाजिम दायित्व मानते है।
यह काम उसे नैतिक और सामाजिक दायित्व लगता है।
ऐसे ही एक और कोरोना वारियर्स है पटवारी मनोज कंवर
संकट के इस समय में दूसरे एक और कोरोना वारिसर्य पटवारी मनोज कंवर है। जो लगातार कोरोना संक्रमित के मृत्य उपरांत उसके शव को अस्पताल से मुक्त करा कर उनके परिजनो को सौंपने और उसके घर तक पहुचाने की व्यवस्था कर रहे है। स्थानीय हो या अन्य ब्लाक का परिस्थिति के अनुरूप शव को मुक्तिधाम तक पहुचाने और उसके अंतिम संस्कार तक ही पूरी व्यवस्था यही करते है। कई बार परिजन नही आते तो मनोज कंवर ही यह नैतिक जिम्मेदारी उठाते हुए अंत्येष्टि की पूरी व्यवस्था करते है। अब तक ये परिजनो के ना आने पर तीन से ज्यादा शव का अंतिम संस्कार भी करा चुके है। इस बीच मनोज एक बार पॉजिटिव भी आ चुके है। इसके बाद भी वह रोज अस्पताल में इस काम के लिए आना जाना करते है, अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था करते है और परिजनो को किसी प्रकार की समस्या ना हो इसक पूर ध्यान रखते है। वास्वतिक में ये असली कोरोना वारिसर्य है जो संकट के भयावह दौर में भी अपने कर्तव्य और दायित्व का साहस के साथ निर्वहन कर रहे है।
इस संबंध में जिला अस्पताल कें सिविल सर्जन डाॅ जी एल टंडन ने बताया कि कोरोना संकटकाल में परिजन भी शव के पास जाने से डरते है। ऐसे कठिन समय में भी मनीष यादव सच्चे समाज सेवी के रूप में इस जोखिम भरे काम को करने के लिए तैयार हुए है। इसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। उन्होेने कहा कि मनीष को शासन प्रशासन एवं अस्पताल प्रबंधन की ओर से हर संभव सहयोग प्रदान किया जाएगा।