कन्हैया तिवारी
गरियाबंद 31 मई 2021
आयुष्मान भारत योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रो में मौजूद ऐसे उप स्वास्थ्य केंद्र को चिन्हांकित कर हेल्थ एंड वेलनेश सेंटर बनाया जाना था जँहा ज्यादा से ज्यादा लोगो को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिल सके।सीएचसी की तुलना में ही इन सेंटरों में उपचार व सूविधा दिया जाना है,इसलिए यहा चयनित 12 सेंटरों में एक एक सीएचओ (कम्यूनिटी हेल्थ ऑफिसर),जिन्हें दवा लिखने एव सामान्य ऐसी बीमारी का इलाज करना है पहले इलाज कराने ग्रामीणों को समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में आना पड़ता था,अब इस सेंटर में सुविधा मिलेगा।
सेंटर की आकर्षक रंगाई पुताई ,सेड ,पानी की पर्याप्त ब्यवस्था भी कराना था। हम जब कुछ दिन पहले कूम्हडई खुर्द,निष्टिगुड़ा,खोखसरा, लाटापारा,कदलीमूड़ा,सितलीजोर व सिनापाली सेंटर का जायजा लिया तो पता चला कि सुविधाएँ से नदारत मिली सेंटर ,तैनात स्टाफ सीमित संसाधनों में अपनी ड्यूटी निभाने को लाचार दिखे।
क्या करते स्टाफ़ जब सीमित समान में उनको ड्यूटी के साथ -साथ अपना काम का फर्ज भी निभाना पढ़ रहा है ,वेलनेश सेंटर की तस्वीर आज भी नही बदली, बिजली पानी जैसी मूलभूत सूविधा से अछूता है सेंटर, आखिर कौन है जिम्मेदार अधिकारी या कर्मचारी,लचर व्यवस्था पर उठे सवाल लगातार सवाल ,लेकिन देखने वाला कोई नही है , जिले में संबंधित अधिकारी एसी लगे कमरे में अपना रोटी सेक रहे है लेकिन यहाँ के सेंटरों को देखने वाला नही की क्या सुविधा होनी है और क्या सुविधा है।
जिससे आज भी विभाग के कर्मचारियों को परेशानी का सामना करना पढ़ रहा है लेकिन वो कर्मचारी भी ऊपर एसी में बैठे अधिकारी को बोलने को कतरा रहे है लेकिन नीचे बैठे अधिकारी भी अपने धुन में काम कर रहे है और कहा क्या-क्या सुविधा नही है क्या क्या सुविधा होनी चाहिए इसकी जानकारी लेने के लिए भी हाथ पैर फूल रहा है । आज के समय मे तो ऊपर एसी में बैठे अधिकारी ओर यहां के अधिकारी को सिर्फ और सिर्फ कोरोना से बढ़कर ओर बहुत अच्छा बहाना कुछ नही हो सकता,सर्वाधिक डिलवरी करने वाला सेंटर में भी प्रसव कराने के जरूरी सामान नही है , बगैर कौर्ड क्लेम के धागे से नाल को बाधा जाता है ब्लॉक ही नही गरियाबंद जिले भर में संस्थागत प्रसव कराने में कुम्हडई खुर्द वेलनेश सेंटर का नाम ऊपर के पांच नामो में गिना जाता है। पर इस सेंटर का अपना सीमित कक्ष है।तीन छोटे छोटे कमरे है जिनमे ही प्रसव,स्टोर व ओपीडी चलता है।यंहा नाम नही बताने के एवज में बताया कि पानी,लेट बाथ, वेस्ट डिस्पोजल, दवा रखने के लिए रेक तक नही है।प्रसव के दरम्यान नाल काटने के लिए कौर्ड क्लेम नही होने से आज भी धागे का इस्तेमाल करते हैं।वार्मर जैसे जरूरी सामान भी यहां नही है।इस सेंटर ने अप्रैल माह में 39,मार्च में 37,फरवरी में 30 व जनवरी में 45 प्रसव कराने का रिकार्ड बनाया है।
बिजली समस्या वाले इस इलाके के सेंटरों में इन्वर्टर नही-चार्जिंग लाइट से कराना होता है प्रसव- बिजली व लो वोल्टेज की समस्या है,ऐसे में प्रसव या रात्रिकालीन उपचार चार्जिंग लाइट की रौशनी में करना होता है ,लाटापारा सेंटर में मौजूद चार्जिंग लाइट,जिसके सहारे प्रशव व अन्य जरूरी काम किया जाता है। निष्टीगुड़ा,लाटापारा,कदलीमूडा में बिजली की ज्यादा समस्या है।नल कनेक्शन कर टँकी तो बिठाया गया है पर सच तो यह है कि पीने तक का पानी हैंडपम्प के जरिये स्टाफ को ही बन्दोबस्त करना होता है। जो कि कर्मचारी पीने का पानी अपने साथ लेकर चलते है
अव्यवस्था को लेकर जब संबंधित अधिकारियों से चर्चा करने के लिए फ़ोन लगाया तो सम्बन्धीत अधिकारी के हाथ पैर फूलने लगे और जबाब भी नही दे सके और बातों में घुमाने लगे इतना ही नही जिला के CMHO डॉ नवरत्न को 2 दिनों से सम्पर्क किया गया तो फ़ोन उठाना भी मुनासिब नही समझे, आज जब लगातार कॉल किया गया तो जब बात हुई तो अपना पक्ष रखते हुये पल्ला झाड़ने लगे ,इससे ये पता चलता है कि कही ना कहि संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के चलते ये सब हो रहा है और स्वास्थ्य विभाग में मन मर्जी के काम हो रहे है लेकिन इनके मर्जी के कारण भुगतना ग्रामीणों को पढ़ रहा है।
इस संबंध में जब सीएमएचओ डॉ नवरत्न गरियाबंद से फ़ोन में वर्जन लेना चाहे तो सीएमएचओ ने बताया कि हर वर्ष दस हजार भेजे जा रहे है उससे जरूरत के समान लिया जा सकता है और आवश्यक प्रायमरी व्यवस्था सभी जगह है और नही है तो सभी RHO के खाते में पैसा भेजे जा रहे है वही से खर्च कर व्यवस्था सुधारा जाएगा । देवभोग बीएमओ डॉ अंजू सोनवानी से भी वर्जन लेना चाहा लेकि कुछ भी बताने से साफ तौर पर इंकार किया गया