प्रमोद मिश्रा, कटगी/ रायपुर, 07 अगस्त 2021
छत्तीसगढ़ के नक्शे पर बलौदाबाजार जिले में बसा गाँव कटगी है, जहां हथकरघा उद्योग आज भी जिंदा है। कटगी के हथकरघा से जुड़े ग्रामीणों के हाथों की कारीगरी ऐसी है कि मशीन से बने कपड़ों की चमक फीकी पड़ जाए। तभी तो इनके हाथों से बने कपड़ों की मांग महानगरों में बनी हुई है। फिल्म नगरी मुंबई हो या फिर बेंगलुरु व हैदराबाद जैसे महानगरों के बड़े-बड़े शो रूम में कटगी के हथकरघों द्वारा निर्मित कपड़े चमक बढ़ा रहे हैं। यही नहीं खरीददारों को अपनी ओर आकर्षित करने में भी सफल हो रहे हैं। हथकरघों द्वारा बने कपड़े महाराष्ट्र, उड़ीसा, मध्यप्रदेश के साथ अनेक प्रदेशों में जाते है । आपको बताते चलें कि कटगी के हथकरघों द्वारा बुनाई किये गए कपड़ों की मांग साल दर साल लगातार बढ़ती जा रही है । कटगी के हथकरघों द्वारा निर्मित कपड़ो की मांग इतनी है कि दूर दराज से लोग लेने आते हैं, साथ ही अच्छी कीमत भी कपड़ों की दे जाते हैं।
गाँव में हथकरघा का कार्य करने वाले बताते हैं कि एकाग्रता के साथ ही उंगलियों को तेज रफ्तार से चलाने की कला पहले सीखनी पड़ती है। जब लकड़ी की मशीन को पैरों से चलाया जाता है, तब वह रफ्तार से चलती है। मशीन की रफ्तार के साथ मेल खाते हुए पैर व हाथों की उंगलियों को चलाना पड़ता है। धागों को उसी अंदाज में पिरोना पड़ता है।
प्रदेश में 231 सहकारी समिति है पंजीकृत
प्रदेश में 231 बुनकर सहकारी समिति पंजीकृत हैं। छत्तीसगढ़ हथकरघा विकास एवं विपणन सहकारी संघ के माध्यम से 12 करोड़ 52 लाख स्र्पये का फंड स्वीकृत किया गया है। इस फंड के जरिए बुनकर अपने परंपरागत व्यवसाय को गति देंगे।
लॉकडाउन के बाद बदले हालात
कटगी गाँव के बुनकर बताते हैं की पहले काम बहुत अच्छा चल रहा था, लेकिन लॉकडाउन का शब्द जब से आया है और कोरोना की मार जब से पड़ी है, तब से उनके बने कपड़ो की कीमत लगभग आधी हो गई है । बुनकर बताते हैं कि पहले कपड़े अच्छे कीमतों में बेचे जाते थे, लेकिन कोरोना के बाद उनकी कमाई आधी हो गई है, जिससे उनके जीवन पर भी प्रभाव पड़ा है और मेहनत का वास्तविक मूल्य नहीं मिल पा रहा है।
कटगी में 90 फीसदी देवांगनों की जनसंख्या
बलौदाबाजार जिले के कटगी गाँव में लगभग 90 फीसदी लोग देवांगन (कोष्टा) जाति से आते हैं । देवांगनों का मुख्य व्यवसाय कपड़ा बुनना ही रहा है । कटगी में लगभग 90 फीसदी देवांगन ऐसे हैं, जो कपड़ों की बुनाई करते हैं । कपड़ों की बनाई में खास बात यह भी है कि कपड़ों की बुनाई में घर के सभी सदस्य अपना अपना योगदान देते हैं। खास बात यह भी है कि महिलाएं भी इस काम को बहुत अच्छे से कर लेती हैं, जिनसे महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने का काम करता है । आपको बताते चलें कि कटगी के अतिरिक्त टुंड्रा, बिलाईगढ़ और बहुत से जगहों में कपड़ो की बनाई होती है ।
इसलिए मनाते हैं हथकरघा दिवस
वर्ष 2014 में जब केंद्र में भाजपा की सरकार काबिज हुई तब बुनकरों की समस्याओं पर गंभीरता से ध्यान देना शुरू किया। बुनकरों की स्थिति सुधारने के लिए सात अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने का निर्णय लिया। इस दिन का देश के इतिहास में विशेष महत्व है। घरेलू उत्पादों और उत्पादन इकाइयों को नया जीवन देने के लिए सात अगस्त 1905 को देश में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ था। स्वेदशी आंदोलन की याद में ही सात अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने का निर्णय लिया गया।