अद्भुत, अविश्वसनीय , अकल्पनीय : चित्रसेन साहू के इस जज्बे को सलाम, यूरोप महाद्वीप के सबसे ऊंची चोटी पर कृत्रिम पैरों की मदद से लहराया तिरंगा

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भुपेश टांडिया

रायुपर 31 अगस्त 2021

 

 

 

छत्तीसगढ़ के पहले युवा पर्वतारोही चित्रसेन साहू ने नेशनल रिकॉर्ड कायम करने के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा 23 अगस्त को चित्रसेन साहू ने माउंट एलब्रुस पर भारत का तिरंगा लहराया इसके साथ ही वे 3 महाद्वीप के उच्च शिखर पर पहुंचने पर गौरव प्राप्त किया है।

चित्रसेन साहू ने अपने कृत्रिम पैरों के माध्यम से यूरोप महाद्वीप के सबसे बड़ी चोटी ‘माउंट एलब्रुस’ 5642 मीटर में पैदल चलकर यह रिकॉर्ड को हासिल किया है।

 

चित्रसेन के बारे में

चित्रसेन साहू राज्य के ब्लेड रनर ‘हाफ ह्यूमन रोबो’ के नाम से जाने जाते हैं , वे मूलतः बालोद जिले के निवासी हैं।
चित्रसेन साहू ‘मिशन inclusion’ मतलब अपने पैरों पर खड़े हैं।
इस मिशन के तहत वे यूरोप की सबसे ऊंची चोंटी माउंट एलब्रुस में उन्होंने भारत का तिरंगा लहराया। चित्रसेन साहू ने बताया कि छत्तीसगढ़ की अमेरिका स्थित NRI संस्था नाचा ( नार्थ अमेरिका छत्तीसगढ़ association) ने इस पर्वतारोहण अभियान को सहयोग किया। सात समुंदर पार अमेरिका की इस संस्था ने चित्रसेन साहू किनीस उपलब्धि को पूरे देश के लिए गौरव बताया और आगामी अभियान के लिए शुभकामनाएं भी दी है।

आखिर क्या क्या परेशानी आयी

चित्रसेन साहू ने बताया कि दोनों पैर कृत्रिम होने की वजह से पर्वतारोहण में बहुत कठिनाइयां आती है और यह अपने आप बहुत बड़ा चैलेंज जिसको उन्होंने स्वीकार किया है और इनका लक्ष्य है की महाद्वीप के साथ शिखर पर फतह करना। जिसमें एलब्रुश के साथ तीन लक्ष्य उन्होंने फतेह कर लिया है। हालांकि -15 से -25 डिग्री तापमान के साथ पर्वतारोहण करना और 50 से 70 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से हवाई तूफान तथा स्नो फॉल इस अभियान में कठिनाई ला रही थी पर अपनी तैयारी पूरी कर रखी थी और अभियान पूरा करने का जज्बा बनाये रखा।

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बधाई देने का लगा रहा तांता

चित्रसेन साहू ने जब यूरोप की सबसे ऊंची चोंटी पर फतह किया तो उन्हें और और अन्य देशों से भी बधाई देने का तांता लग गया उनके मोबाईल में लगातार फोन आने शुरू हो गए और अपने देश के साथ अन्य आदेशों के लोगों ने भी उनका खूब सपोर्ट किया।

छत्तीसगढ़ सरकार से आग्रह

चित्रसेन साहू ने बताया कि पर्वतारोहण करना भी एक प्रकार का खेल ही है इसको छत्तीसगढ़ में भी खेल के रूप में स्वीकार्य करना चाहिए और उनके लिए भी सहायता राशि दी जानी चाहिए।

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