प्रमोद मिश्रा
रायपुर, 14 फरवरी 2022
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक जगह ऐसा भी गई जहां अक्सर प्रेमी जोड़े आपको दूल्हा और दुल्हन के लिबाज में शादी करते दिखेंगे । इस जगह को प्यार करने वाले प्यार का मंदिर भी मानते हैं । जब प्रेमी जोड़े को लगता है कि घरवाले तो शादी के लिए राजी होंगे नहीं, तो जुबान से एक ही बात निकलती है, टेंशन नहीं आर्य समाज का मंदिर है न ।छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अंग्रेजों के जमाने का यह मंदिर है, जो प्यार करने वालों के लिए किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है। यहां प्यार करने वालों को वो मिलता है, जिसकी चाहत लिए वो इश्क के दरिया में डूबते हैं, यानी अपने चाहने वालों का साथ और जिंदगी भर हाथों में हाथ। इस मंदिर में आकर प्रेमी जोड़े शादियां कर रहे हैं और अपना घर बसा रहे हैं। यह मंदिर है रायपुर के बैजनाथ पारा स्थित आर्य समाज मंदिर।
लाला लाजपत राय ने किया था उद्घाटन
मंदिर के प्रधान लक्ष्मी नारायण महतो ने बताया, ‘भारत के स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय 1907 में रायपुर आए थे। तब आर्य समाज मंदिर की स्थापना हुई थी। रायपुर को उस समय सीपी (सेंट्रल प्रोविंस) बरार, कहा जाता था। शहर के लाल बैजनाथ ने इस इलाके में मंदिर बनाने में सहयोग किया, अब इस इलाके को बैजनाथ पारा के नाम से जाना जाता है।
तब के MP के पहले CM पं रविशंकर शुक्ल भी आर्य समाज के इस मंदिर से जुड़े थे। इस मंदिर की शुरुआत करने वाले राय भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्हें पंजाब केसरी भी कहा जाता है। इन्होंने पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना भी की थी। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे।’
हर साल 2 हजार से ज्यादा जोड़ों की शादी
अंग्रेजों के दौर से लेकर अब तक रायपुर के इस आर्य समाज मंदिर में 28 हजार 500 से ज्यादा प्रेमी जोड़ों की शादियां करवाई जा चुकी हैं। मंदिर के प्रधान महतो ने बताया, ‘यहां पिछले दो सालों में कोविड के दौरान ऐसा हुआ कि कई दिनों तक आचार्यों ने एक भी विवाह संपन्न नहीं करवाया, ऐसा 100 सालों के इतिहास में पहली बार हुआ था। सामान्य दिनों में हर साल 2 हजार से अधिक जोड़ों की यहां शादी होती है। कोविड से पहले साल 2019 में 2131, 2021 में 1762 और 2020 में 1532 जोड़ों की शादियां यहां संपन्न हुईं।’
जब पैरेंट्स हो जाते हैं मारपीट पर उतारू
आर्य समाज मंदिर के पदाधिकारियों ने बताया, ‘यहां प्रेमी जोड़े कई बार घरवालों को बिना बताए शादी करने पहुंचते हैं। मगर भनक लगने पर यहां घर वाले भी अपने रिश्तेदार और कुछ गुंडों को लेकर पहुंच जाते हैं, कई बार धक्का-मुक्की झूमाझटकी के हालात पैदा होते हैं। हाल ही में एक दूल्हे को उसका भाई मंडप से उठाकर ले जा रहा था, समाज के पदाधिकारियों ने उसे रोका, पुलिस बुलवाई गई। पुलिस के पहरे के बीच जोड़े की शादी करवाई गई।’
क्यों करवाता है आर्य समाज शादियां?
आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने सन 1875 में की थी। यह पूरी तरह से आस्तिक (भगवान को मानने वाला) संगठन है। समाज के लोग बताते हैं, ‘यह मत, मजहब, संप्रदाय, वगैरह नहीं है। समाज का मकसद सनातन धर्म का वैदिक प्रचार करना है। वेद प्रचार के लिए आर्य समाज की स्थापना की गई थी। यह समाज जन्म से जात-पात का खंडन करता है, इसी वजह से एकता के लिए अंतरजातीय विवाह करवाता है और प्रेमी जोड़ों की शादी करने में मदद करता है।’
यहां शादी के लिए इन नियमों का कराया जाता है पालन
प्रेमी जोड़ों की चार-चार पासपोर्ट साइज फोटो देनी होती है। लड़के- लड़की को स्टांप पेपर पर एफिडेविट देना होता है। जोड़ों की तरफ से तीन लोगों का मौजूद होना जरूरी होता है। शादी करने वालों का हिंदू होना जरूरी है। गैर हिंदू होने पर उनका वैदिक शुद्धीकरण संस्कार करने के बाद शादी की जाती है। विवाह के लिए 4000 रुपए का विवाह शुल्क लिया जाता है। आर्थिक रूप से कमजोर जोड़ों को कई बार संस्था के लोग निशुल्क भी सहायता करते हैं। 2 मीटर पीला कपड़ा, दो फूलों के हार और कुछ खुले फूल लेकर जोड़े पहुंचते हैं। जरूरत के अनुसार, मिठाई भी जोड़े लाते हैं, बस इसके बाद शादी की रस्म पूरी की जाती है।