बीजेपी नेता ने मांगा मंत्री कवासी लखमा का इस्तीफा : तीन दिन बीत जाने के बाद भी आरक्षण संशोधन विधेयक पर राज्यपाल का हस्ताक्षर नहीं, मंत्री चौबे बोले : ‘…केवल लीगल सलाह के लिए तीन-तीन दिन तक किसी विधेयक पर लग जाना…हम लोगों को चिंतित करता है”

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प्रमोद मिश्रा

रायपुर, 06 दिसंबर 2022

छत्तीसगढ़ में नए आरक्षण संशोधन विधेयक पर अभी भी पेंच फंसने के आसार दिखाई दे रहे हैं । दरअसल, छत्तीसगढ़ के विधानसभा सदन में 2 दिसंबर 2022 को आरक्षण संशोधन विधेयक सर्वसम्मति से पारित हुआ था । इसके बाद 5 मंत्रियों ने राज्यपाल अनुसुइया उइके को जाकर आरक्षण संशोधन विधेयक सौंपा था । लेकिन, तीन दिन बीत जाने के बाद भी आरक्षण संशोधन विधेयक पर राज्यपाल का हस्ताक्षर नहीं हुआ है,  ऐसे में अब विपक्ष भी सरकार पर हमलावर हो गया है।

 

 

 

पूर्व मंत्री और बीजेपी महामंत्री केदार कश्यप ने स्वास्थ मंत्री कवासी लखमा का इस्तीफा मांगा है । दरअसल मंत्री कवासी लखमा ने कहा था कि अगर मैं आदिवासियों को उनका आरक्षण नहीं मिला पाया, तो राजनीतिक से सन्यास ले लूंगा । कवासी लखमा के इसी बयान को आधार बनाकर अब बीजेपी के प्रदेश महामंत्री केदार कश्यप कवासी लखमा से इस्तीफा मांग रहे हैं ।

आपको बताते चलें कि इस मामले पर मंत्री रविंद्र चौबे ने भी आज बयान दिया है । मंत्री चौबे ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि आज शाम तक राज्यपाल आरक्षण संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर कर देंगी । साथ ही कैबिनेट मंत्री रविंद्र चौबे ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि राज भवन कार्यालय में 3 दिनों तक हस्ताक्षर नहीं होना निश्चित तौर पर हमें चिंतित करता है ।

सवर्ण समाज कर रहा विरोध

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आपको बताते चलें कि आरक्षण संशोधन को लेकर कई जगह विरोध के स्वर भी दिखाई दे रहे हैं । सवर्ण समाज आरक्षण संशोधन विधेयक के विरोध में कई जगह प्रदर्शन भी कर रहा है । दरअसल, 02 दिसंबर को सदन में छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण) संसोधन विधेयक-2022 और छत्तीसगढ़ शैक्षणिक संस्था प्रवेश में आरक्षण (संशोधन) विधेयक – 2022 पारित हुआ है । आरक्षण संशोधन विधेयक में एसटी वर्ग को 32%, ओबीसी वर्ग को 27%, एससी वर्ग को 13% और सामान्य वर्ग के गरीब परिवारों को 4% आरक्षण दिया गया है । सामान्य वर्ग के गरीब परिवारों का कहना है कि जब पूरे देश में सामान्य वर्ग के गरीब परिवारों के लिए 10% आरक्षित किया गया है ल, तो फिर छत्तीसगढ़ में बेवजह कटौती क्यों की जा रही है?

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