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China trap Afghanistan in Debt: क्या चीनी चंगुल में फंसने जा रहा अफगानिस्तान?

प्रमोद मिश्रा, 9 मई 2023

60 अरब डॉलर के अपने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर को चीन अफगानिस्तान तक ले जाएगा। इसके लिए उसने अफगान की सत्ता पर काबिज तालिबान को राजी कर लिया है। इस्लामाबाद में चीन और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने अफगानिस्तान के अपने समकक्ष के साथ ये अहम समझौता किया। अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण के नाम पर मदद देने के पीछे क्या है चीन का इरादा? चीन के कर्ज के जाल में तो नहीं फंस जाएगा अफगानिस्तान? भारत के लिए इसके क्या मायने हैं, इस पर चर्चा के लिए आज हमारे साथ हैं जेएनयू में स्कूल ऑफ इंटरनैशनल स्टडीज़ की प्रफेसर अंशु जोशी।

प्रोफेसर जोशी, कैसे देखती हैं आप इस समझौते को?

हम अपने आसपास जिन स्थितियों का निर्माण होते हुए देख रहे हैं और हम ये देख रहे हैं कि हाल ही में एससीओ का एक समिट अभी नई दिल्ली में संपन्न हुआ। इसके बाद आज हम इस प्रकार की खबरें देख रहे हैं कि चीन और पाकिस्तान ने मिलकर तालिबान को इकोनॉमिक कॉरिडोर के डेवलपमेंट के नाम पर सहायता करने की बात की है। इसके बहुत सारे असली राजनीतिक उद्देश्य हैं, वो हमें समझने की जरूरत है। थोड़ा सा इतिहास में भी जाने की जरूरत है। रीजनल कनेक्टिविटी के नाम पर हम देखते हैं कि 2013 से चीन ने ये इकोनॉमिक कॉरिडोर का कॉन्सेप्ट लेकर काम करना शुरू किया था। इसके नाम पर देखें तो चीन ने चीन-मंगोलिया-रशिया कॉरिडोर, चीन-इंडोनेशिया कॉरिडोर, चीन-बांग्लादेश-भारत कॉरिडोर, चीन-पाकिस्तान कॉरिडोर, चीन-सेंट्रल एशिया-वेस्ट एशिया कॉरिडोर और इस तरह के जो ये तमाम कॉरिडोर्स हैं, इसकी महत्वपूर्ण योजनाएं बनाकर इस पर काम करना शुरू किया। इसको हम बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी बीआरआई भी कहते हैं। अभी तक देखें तो ये चीन का बहुत ही महत्वाकांक्षी प्लान है। इसको डिप्लोमैटिक और पॉलिटिकल प्लान भी कह सकते हैं। इकोनॉमिक प्लान तो है ही। इसमें 240 बिलियन डॉलर अब तक चीन इन्वेस्ट कर चुका है।

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अब कहीं ना कहीं इसी के नाम पर तालिबान को मुझे बेलआउट कराते हुए दिख रहा है। पिछले दिनों मैंने यूनाइटेड नेशन्स की एक रिपोर्ट पढ़ी थी कि अफगानिस्तान की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। जिस प्रकार से तालिबान ने सत्ता पर काबिज होने के बाद निर्णय लिए, जिस तरह से वहां महिलाओं की स्थितियां हुईं। जिस तरह से वहां पर कामकाजी लोगों की स्थिति हुई। जिस तरह से सामान्य व्यक्ति की दिनचर्या और तमाम चीजें प्रभावित हुईं। उस पर इंटरनैशनल इंस्टिट्यूशंस और पश्चिमी खेमे के देशों ने नकारात्मक प्रतिक्रिया जताई। तालिबान से वैसे भी इस प्रकार की अपेक्षाएं नहीं थीं कि वो किसी भी डेमोक्रेटिक वैल्यू को प्रमोट करते हुए काम करेगा। अब हम ये जो नेक्सस बनते हुए देख रहे हैं, तब भी देखा था कि किस तरह से जब तालिबान ने सत्ता हथियाई अफगानिस्तान में, तो कैसे वहां पर पाकिस्तान के आईएसआई चीफ बैठे हुए थे। हमने ये भी देखा कि किस तरह से चीन का सपोर्ट तालिबान को शुरू से ही रहा है। इसको हम इस तरह से भी देख सकते हैं कि भारत को काउंटर करने के लिए ये सब किया जा रहा है। जो ईस्टर्न कॉरिडोर है, जिसमें ईरान का चाबहार पोर्ट विकसित करने के लिए भारत काफी कुछ काम कर रहा है। उसके डिवेलपमेंट में 13 देश शामिल हैं और इसको नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर के जरिये विकसित किया जा रहा है। जब तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता हथियाई तो उस समय से कयास लगने शुरू हुए थे कि अब जो ये चाबहार पोर्ट का जो विकास है, इसमें कहीं ना कहीं अड़ंगे आएंगे क्योंकि अफगानिस्तान से होते हुए रास्ता जाता है। निश्चित तौर पर अपने इसी इकोनॉमिक कॉरिडोर के विकास के नाम पर चीन ग्वादर पोर्ट को डिवेलप कर रहा है, तो इसके मायने आपको समझाना चाहूंगी। लेकिन अभी फिलहाल तो यही कहूंगी कि इस पूरी सिचुएशन को अगर हम विश्व शांति और सुरक्षा की दृष्टि से देखें तो ये कोई अच्छी स्थिति तो बनती हुई नजर नहीं आती है

 

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मुझे नहीं लगता कि भारत आज की तारीख में ऐसी कोई बुरी स्थिति में है या अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर हमें बहुत परेशान होने की जरूरत है। लेकिन हां, हमें सचेत होने की जरूरत है। अब हम पिछले कुछ दिनों की घटनाओं पर गौर करें और आज की खबर पर गौर करें। चीन पाकिस्तान के साथ ‘चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर’ यानी CPEC पर कई सालों से काम कर रहा है। इसके तहत चीन ग्वादर पोर्ट का विकास कर रहा है। अब क्यों कर रहा है? पहले क्या होता था कि यदि चीन को व्यापार के लिए या सामरिक दृष्टि से भी अगर हम उसका रूट देखें तो फिर वो साउथ चाइना सी और मलक्का से गुजरकर हिंद महासागर से होते हुए आगे जाता हुआ दिखाई पड़ता है। चीन अब ये चाहता है कि सड़क के जरिये चीन से पाकिस्तान के ग्वादर तक वो एक रास्ता बनाया जाए। ग्वादर से आगे सेंट्रल एशिया और फिर वेस्ट एशिया और फिर आगे वेस्ट की तरफ चाहे ट्रेड की दृष्टि से जाना हो या सामरिक दृष्टि से, वो यहां पर अपना एक अहम हेडक्वॉर्टर विकसित कर ले। अब जो वो पूरा रोड रूट विकसित कर रहा है, उसमें उसने कौन-कौन से इलाके लिए? उसमें खैबर पख्तून का भी इलाका है। उसमें गिलगित बाल्टिस्तान का भी इलाका है। आज़ाद कश्मीर का भी इलाका है, उसमें बलोचिस्तान का भी इलाका है। पंजाब और सिंध भी है।

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