प्रमोद मिश्रा
कोरबा, 11 सितंबर 2024
एसईसीएल की कुसमुंडा खदान में बिना ब्लास्टिंग के कोयला उत्पादन किया जा रहा है, जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है। खदान में ड्रिलिंग और ब्लास्टिंग फ्री सरफेस माइनर तकनीक का उपयोग किया जा रहा है, जिससे आसपास के लोगों को धूल, कोल डस्ट और हादसों से राहत मिलेगी।
पिछले वित्तीय वर्ष में 53% कोयला उत्पादन इस तकनीक से किया गया था, और मौजूदा वित्तीय वर्ष में भी यह काम जारी है। कुसमुंडा खदान विश्व की चौथी सबसे बड़ी कोयला खदान है, और गेवरा के बाद देश की दूसरी खदान है जिसने 50 मिलियन टन कोयला उत्पादन हासिल किया है।
एसईसीएल की गेवरा और कुसमुंडा खदानों को विश्व की टॉप 10 कोयला खदानों की सूची में क्रमश: दूसरा और चौथा स्थान मिला है। कोरबा जिले में स्थित एसईसीएल के इन दो मेगाप्रोजेक्ट्स द्वारा साल 23-24 में 100 मिलियन टन से अधिक का कोयला उत्पादन किया गया था, जो कि भारत के कुल कोयला उत्पादन का लगभग 10 प्रतिशत है।
इस तकनीक से कोयला उत्पादन में आसपास के लोगों को कई समस्याओं से राहत मिलेगी, जैसे कि घरों की दीवारों में दरारें आने की समस्या, छत का प्लास्टर गिरने की समस्या, और धूल और कोल डस्ट की समस्या। साथ ही, यह तकनीक पर्यावरण को भी सुरक्षित रखेगी।
खदान में कोयला खनन के लिए विश्व-स्तरीय अत्याधुनिक मशीनों जैसे सरफेस माइनर का प्रयोग किया जाता है। यह मशीन ईको-फ्रेंडली तरीके से बिना ब्लास्टिंग के कोयला खनन कर उसे काटने में सक्षम है। ओवरबर्डन (मिट्टी और पत्थर की ऊपरी सतह जिसके नीच कोयला दबा होता है) हटाने के लिए यहां बड़ी और भारी एचईएमएम (हेवी अर्थ मूविंग मशीनरी) को प्रयोग में लाई जाती है, जिसमें 240-टन डंपर, 42 क्यूबिक मीटर शॉवेल व पर्यावरण-हितैषी ब्लास्ट-फ्री तरीके से ओबी हटाने के लिए वर्टिकल रिपर आदि मशीनें शामिल हैं।
कुसमुंडा खदान ने वित्तीय वर्ष 23-24 में 50 मिलियन टन कोयला उत्पादन हासिल किया गया है और गेवरा की बाद ऐसा करने वाली यह देश की केवल दूसरी खदान है। एसईसीएल की गेवरा माइन की वार्षिक क्षमता 70 मिलियन टन की है।