नई दिल्ली, 09 अप्रैल 2025
सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान बड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि यदि ईडी के पास भी मूल अधिकार हैं, तो उसे आम जनता के अधिकारों का भी उतना ही सम्मान करना चाहिए। यह टिप्पणी छत्तीसगढ़ के नागरिक आपूर्ति निगम में हुए बहुचर्चित घोटाले की जांच दिल्ली स्थानांतरित करने की ईडी की मांग पर हुई।
ईडी ने आर्टिकल 32 के तहत याचिका दायर करते हुए आरोप लगाया था कि छत्तीसगढ़ की आपराधिक न्याय प्रणाली इस जांच को प्रभावित कर रही है। ईडी का दावा था कि गवाहों को धमकाया जा रहा है और जांच अधिकारियों पर राजनीतिक दबाव बनाया जा रहा है। इसी आधार पर एजेंसी ने जांच को दिल्ली स्थानांतरित कर नए सिरे से ट्रायल की मांग की थी।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की मंशा पर सवाल उठाए और कहा कि आर्टिकल 32 का प्रयोग तभी हो सकता है जब किसी के मूल अधिकारों का हनन हो। अदालत ने यह भी आश्चर्य जताया कि केंद्र की एक जांच एजेंसी ने राज्य सरकार की संस्थाओं के खिलाफ याचिका दायर की है। इसके बाद ईडी ने अदालत से अपनी याचिका वापस ले ली।
ईडी ने यह याचिका 2015 में नागरिक आपूर्ति निगम में हुए चावल घोटाले से जुड़ी जांच के संबंध में दाखिल की थी। इस मामले में पूर्व IAS अधिकारी अनिल टुटेजा सहित कई लोग आरोपी हैं। ईडी का आरोप है कि 2018 में सरकार बदलने के बाद टुटेजा तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी हो गए और उन्हें अग्रिम जमानत दिलाई गई, जिससे जांच प्रभावित हुई।
एजेंसी ने अपनी याचिका में एसआईटी और टुटेजा के बीच वॉट्सऐप चैट्स और कॉल रिकॉर्ड्स का हवाला भी दिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि ऐसे मामलों में जनता के अधिकारों की रक्षा सर्वोपरि है और जांच एजेंसियों को संविधान के दायरे में रहकर ही काम करना होगा।
— रिपोर्टिंग डेस्क