बच्चों में अच्छी आदतें एवं संस्कार देने जुटा है महिला एवं बाल विकास विभाग

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कन्हैया तिवारी महासमुंद 

20अप्रैल 2020

बचपन पूरे जीवन की नींव होता है। बचपन में बनी आदतों के स्थायी प्रभाव पूरे जीवन भर रहता है। बच्चों में अच्छी आदतों के निर्माण, उनको मूल्यों – संस्कारों की सीख देने में परिवार की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इस तथ्य के दृष्टिगत महिला एवं बाल विकास विभाग महासमुन्द द्वारा बच्चों की परवरिश से संबंधित जन जागरूकता कार्यक्रम अप्रैल माह में शुरू किया गया है। इस कार्यक्रम के केन्द्र में बच्चों की परवरिश के पंचसूत्र हैं। इन सूत्रों को ध्यान में रखकर कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है।
महिला एवं बाल विकास अधिकारी सुधाकर ने बताया कि इसके तहत बच्चों को स्वावलंबी बनाना, मेहनत का महत्व समझाना है। उद्देश्य यह है बच्चा बड़ा होकर मेहनतकश इंसान बने, आलसी न बने । इसके लिए पालक 4-5 साल में खेल-खेल में प्रयास शुरू कर सकते हैं। घर मे माँ झाड़ू लगा रही है तो बच्चे को भी एक छोटा पुराना झाड़ू दे दें, बर्तन साफ़ कर रही हैं, घर पर पोंछा लगा रही है , कपड़े धो रही है,किचन में खाना बना रही है तो बच्चे को भी अपने साथ शामिल करे । बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता जाए इन कार्यों की गम्भीरता बढ़ाते जाएँ। यह कार्य 15 वर्ष की उम्र तक करना है। उन्होंने ने बताया कि स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदत अपनाने पर जोर दिया जा रहा है। जब बच्चा 5-6 वर्ष का हो जाए तो पिता की जिम्मेदारी हो कि बच्चे को सुबह उठाकर शारीरिक व्यायाम करवाएं अपने साथ टहलने ले जाएं।

 

 

 

सुबह उठकर गुनगुना पानी पीना, दिन में 2 बार ब्रश करना, मीठा खाने के बाद मुँह पानी से साफ़ करना आदतें अपनाने के लिए कहे। इसके अलावा चिप्स, कुरकुरे मैगी इत्यादि फ़ास्ट फ़ूड की आदत धीरे-धीरे बच्चों को छुड़ाना जरूरी है। आज गाँव मे चिप्स, कुरकुरे की बच्चों की लत जैसी लग गई है । इसकी आदत को कम करते हुए, भीगा मूँगफली, चना-गुड़, चना-मुर्रा, फल्ली लड्डू, चिक्की, करी लड्डू इत्यादि खाने को देना चाहिए।
उन्होंने बताया कि मोबाइल और टी.वी. के सामने बच्चों को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। बच्चों को इससे बचाने की सख्त जरूरत है इस पर कई तरह की हिंसा, रिश्तों में कड़वाहट, वैमनस्य मुख्य रूप से दिखाया जाता है। बच्चे में सही गलत का अंतर करने की क्षमता नहीं होती हैं। इसलिए इसकी लत से बचाना ज़रूरी है। बच्चा मोबाइल और टी.वी. सीमित समय देखें लेकिन पालकों के साथ देखें तो उचित है। उन्होंने बताया कि इसके तहत बच्चों के पालकों को अपना समय देने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है। बच्चे माता-पिता की सबसे बड़ी पूँजी हैं। उनके साथ पारंपरिक खेल खेलें, गीत, कहानी, कविता इत्यादि सुनाएँ। इससे बच्चा माता-पिता से जुड़ाव भी महसूस करेगा।सुधाकर ने बताया कि इन महत्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान मे रखकर परिवार को किस प्रकार समझाईश दी जानी है इस संबंध में पर्यवेक्षकों और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का ऑन फील्ड प्रशिक्षण सम्पूर्ण जिले में दिया जा रहा है । बच्चों की परवरिश से संबंधित ये बातें सरल भाषा मे 3 से 6 वर्ष के बच्चों के पालकों को गृहभेंट के माध्यम से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता द्वारा समझाई जा रही हैं। जिला महिला बाल विकास अधिकारी एवं परियोजना अधिकारियों द्वारा कार्यक्रम के सपोर्टिंव सुपर विज़न हेतु फील्ड पर सतत भ्रमण किया जा रहा है।

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