13 Jun 2025, Fri
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लॉकडाउन में मजदूर छत्तीसगढ़ की राजधानी से निकले अपने घर झारखंड की ओर .. कहीं लिफ़्ट देकर कुछ लोगों ने दिखाई मानवता तो कहीं भूख मिटाकर लोगों ने निभाया मानव धर्म

बलरामपुर

 

कोरोना के सम्बंध में हुए लॉकडाउन के समय में कई मजदूरों को आपने देखा सुना होगा कि वह दूसरे शहरों से पैदल चलकर ही अपने घर की ओर जा रहे हैं ..अभी लॉकडाउन 2.0 में भी आपको बता दें कि मजदूरों का आना जाना लगा हुआ है ..लॉक डाउन के कारण वाहनों के बंद होने पर मजदूर मिलों दूरी तय करके पैदल ही अपने घर की ओर जा रहे हैं तो वहीं कुछ लोग साइकल की भी मदद ले रहे हैं ..आपको बता दे कि इस बीच सड़कों पर भी मानवता की मिसाल देखने को मिल रही है मजदूरों को इंसानियत दिखाते हुए कुछ लोग लिफ्ट दे रहे हैं तो कुछ लोग इनकी भूख भी मिट रहे है ।

आज की खबर भी मजदूरों से संबंधित है दरअसल कुल 17 मजदूर लॉकडाउन में छत्तीसगढ़ की राजधानी से अपने घर झारखंड जाने के लिए निकले यह सभी मजदूर रायपुर स्टील प्लांट में मजदूरी का कार्य करते थे और इन्हें रायपुर से झारखंड के डाल्टनगंज जाना था लिहाजा वाहन न चलने पर इन सभी ने पैदल तथा साइकिल के माध्यम से ही जाने का ठान लिया.. इसी क्रम में वह कल बलरामपुर जिले के बरियों पहुंचे

यहाँ के स्थानीय बीडीसी मुकेश गुप्ता तथा जनप्रतिनिधियों ने जब उनसे जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि 4 दिन पहले वह राजधानी रायपुर से निकले हुए हैं बीच-बीच में उन्हें वाहनों से लिफ्ट भी मिलता गया और कई जगहों पर लोगों ने उन्हें भोजन भी कराया उन्होंने बताया कि कुल 17 साथी एक साथ वहां से निकले हैं कुछ लोगों के पास साइकिल भी है और कई लोग पैदल भी है ..सभी मिलो दूरी तय करके लिफ्ट के सहारे तो कहीं पैदल चलकर अपने घरों की ओर जा रहे हैं ।

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बरियों के जनप्रतिनिधियों ने यह सुनने के बाद सबसे पहले उन सभी 17 मजदूरों के लिए भोजन की व्यवस्था की सभी को भरपेट भोजन कराया क्योंकि उन्हें अभी भी कई किलोमीटर की दूरी तय करनी थी ..आपको बता दें कि लॉकडाउन के बीच इंसानों ने जिस प्रकार से इंसानों की मदद की है या यूं कहें कि इंसानियत की परिभाषा को जिस तरह से परिभाषित किया गया है यह काबिले तारीफ है ..देखा जाता है की भागदौड़ भरी जिंदगी में सभी अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं..लॉकडाउन में जहां कुछ लोगों को परेशानी हो रही है तो उनकी समस्या का हल भी प्रशासनिक टीम तो निकाली रही है लेकिन आम इंसान भी उनकी मजबूरियों को बखूबी समझ रहे हैं।

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