प्रमोद मिश्रा
रायपुर, 03 सितंबर 2021
छत्तीसगढ़ बीजेपी की चिंतन शिविर की शुरुआत 31 अगस्त दिन मंगलवार को हुई । तीन दिन तक चले चिंतन शिविर में बड़े नेताओं की मन की बात प्रदेश प्रभारी और प्रदेश सह – प्रभारी ने जानने की कोशिश की । चिंतन शिविर में यह बात सामने आई कि 2023 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को अगर जीत चाहिए तो तैयारी अभी से शुरू करनी पड़ेगी । सूत्र बताते है कि बीजेपी के चिंतन शिविर में प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने साफ कर दिया कि 2023 का विधानसभ चुनाव पार्टी के किसी विशेष चेहरे पर नहीं बल्कि केंद्र सरकार की विकास और राज्य सरकार के भ्रष्टाचार, धर्मान्तरण, नक्सलवाद के बढ़ते ग्राफ के साथ लड़ा जाएगा ।
दरअसल इस बात के मायने यह है कि जिस हिसाब से पार्टी की दुर्गति 2018 के विधानसभा चुनाव में हुई है उससे पार्टी केंद्रीय नेतृत्व भी अनजान नहीं है और केंद्रीय नेतृत्व को भी लगता है कि अब समय आ गया है कि इस बार भी 2003 विधानसभा चुनाव की तरह चुनाव लड़ा जाए, जिससे पार्टी को फायदा ज्यादा हो ।
प्रदेश प्रभारी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को किया चार्ज
पार्टी प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने शिविर के अंतिम दिन पार्टी कार्ययकर्ताओं में जोश भरने के लियेे कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व से लेकर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नेताओं पर भी जमकर प्रहार किया । डी पुरंदेश्वरी ने कहा कि यदि कांग्रेस को अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनना है तो सभी जानते हैं परिवार के ही सदस्य बनेंगे, लेकिन भाजपा में परिवारवाद नहीं चलता है। भाजपा को यदि राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनना हो तो उनका एक कार्यकर्ता बनता है।
पुरंदेश्वरी ने कहा कि BJP एक ऐसी राजनीतिक पार्टी है जो अपने कार्यकर्ताओं की अनदेखी नहीं करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक चाय बेचने वाले परिवार से हैं। जो अपनी पार्टी को मां मानते हैं। उन्होंने पार्टी की सेवा की और पार्टी ने उन्हें सम्मान दिया है, उन्हें प्रधानमंत्री के पद पर बैठाया है। यदि ऐसे ही हरेक कार्यकर्ता पार्टी के लिए बिना स्वार्थ के लिए काम करेगा तो उन्हें पार्टी सम्मान जरूर देगी। अब आने वाले चुनाव में हमें छत्तीसगढ़ में भी पूर्ण बहुमत से भाजपा की सरकार बनानी है। उसके लिए बस्तर की भी सीटें हमें जितनी है। यह तब संभव होगा जब भाजपा का एक-एक कार्यकर्ता अपनी पूरी ताकत झोंक देगा। कांग्रेस के झूठे वादों की पोल खोलना है।
क्या चेहरे से नहीं बल्कि मुद्दों पर चुनाव लड़ने से मिलेगी जीत?
2003 के विधानसभा चुनाव में जब छत्तीसगढ़ में बीजेपी को पहली बार जीत मिली तब भी पार्टी ने किसी एक विशेष चेहरे को लेकर चुनाव नहीं लड़ा और ऐसा नहीं करने से पार्टी सत्ता में आई और 15 साल तक सत्ता का सुख भोगते रही। 2008 और 2013 में चेहरा विशेष पर चुनाव लड़ने से बीजेपी को राज्य में सत्ता जरूर मिली लेकिन सीटों की संख्या नहीं बढ़ पाई । 2018 में चेहरा विशेष पर लड़ने का भारी भरकम नुकसान पार्टी को उठाना पड़ा और पार्टी महज 15 सीटों पर सिमट गई ( वर्तमान में 14 सीटें है) । ऐसे में पार्टी नेतृत्व भी अब समझ गई है कि चुनाव में अगर जीत हासिल करना है तो मुद्दों पर चुनाव लड़ने की आवश्यकता है । आपको बताते चले कि जब 2000 में कांग्रेस भी सत्ता में आई तो अजीत जोगी को जब सीएम बनाया गया तो किसी को नहीं लगा था कि अजीत जोगी सीएम बनेंगे । साल 2018 का विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस ने चेहरे पर नहीं बल्कि मुद्दों पर लड़ा और ऐतिहासिक जीत हासिल की । ऐसे में यहीं कहा जा सकता है कि पार्टी को मुद्दों पर चुनाव लड़ने से लाभ अधिक मिलेगा ।
रमन सिंह का चेहरा नहीं तो पार्टी को क्या होगा नुकसान?
छत्तीसगढ़ में बीजेपी 2023 का चुनाव तीन बार सीएम रहे डॉ रमन सिंह के चेहरे पर नहीं बल्कि मुद्दों के आधार पर लड़ना चाह रही है । ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इसका फायदा पार्टी को मिलेगा या फिर पार्टी को नुकसान उठाना पड़ेगा । पार्टी से जुड़े सूत्र बताते है कि केंद्रीय नेतृत्व ने यह भाप लिया है कि अब रमन सिंह के चेहरे के दम पर अगर 2023 का चुनाव लड़ा जाए तो पार्टी को उम्मीद के मुताबिक रिजल्ट नहीं मिलेगा । ऐसे में पार्टी के कार्यकर्ताओं की भी मांग है कि इस बार का चुनाव रमन सिंह के चेहरे पर नहीं बल्कि मुद्दडो पर लड़ा जाए जिससे पार्टी को ज्यादा फायदा होगा ।