• आज ED के सामने पेश होंगे पूर्व आबकारी मंत्री लखमा
• अरुणपति त्रिपाठी को लेकर साइन कराने की कही थी बात
रायपुर, 03 जनवरी 2025
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) 2161 करोड़ के शराब घोटाले में पूर्व आबकारी मंत्री एवं कोंटा के कांग्रेस विधायक कवासी लखमा उनके पुत्र सहित अन्य लोगों को गिरफ्तार कर सकती है। 3 जनवरी को ईडी दफ्तर में पूछताछ के लिए उपस्थिति दर्ज कराने पर सभी का बयान लिया जाएगा। इस दौरान संतोषजनक जवाब नहीं देने पर हिरासत में लेकर विशेष न्यायालय में पेश किया जा सकता है।
ईडी ने छापेमारी के 5 दिन बाद प्रेस रिलीज जारी कर बताया कि पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा अपने कार्यकाल के दौरान नकदी में अपराध की आय (पीओसी) के मुख्य प्राप्तकर्ता थे। उनके बेटे हरीश लखमा और उनके करीबी सहयोगियों के आवासीय परिसरों में नकद में पीओसी के उपयोग से संबंधित सबूत मिले हैं।
वहीं तलाशी में डिजिटल उपकरणों की बरामदगी और जब्ती भी हुई, जिनमें आपत्तिजनक रिकॉर्ड होने का संदेह है। इस प्रकरण की जांच के दौरान पहले ही अनवर ढेबर, अनिल टुटेजा और अन्य लोगों का शराब सिंडिकेट के रूप में काम करने के इनपुट मिल चुके है।
ED के अनुसार वहीं घोटाले से अर्जित रकम प्रतिमाह लखमा को मिलती थी। 2019 से 2022 के बीच हुए शराब घोटाले में ईडी को जांच में पता चला है कि अवैध कमीशन विभिन्न माध्यम से एकत्रित की जाती थी। बता दें कि ईडी ने शराब घोटाले की जांच करने 28 दिसंबर 2024 को कवासी लखमा, उनके पुत्र हरीश, नगर पालिका अध्यक्ष जगन्नाथ राजू साहू और कांग्रेस नेता सुशील ओझा के रायपुर, धमतरी के साथ ही सुकमा स्थित 7 ठिकानों में छापामारा था।
मैं कानून को मानता हूं: लखमा
शराब में जारी किए गए संमस के बाद कवासी लखमा ने मीडिया से कहा कि, मैं कानून को मानता हूं, ईडी जो जानकारी लेगी उसके संबंध में पूरी जानकारी दूंगा। जो आरोप लगाए गए हैं उनका ईडी को जवाब देंगे और जो दस्तावेज मांगे गए हैं वह भी उपलब्ध कराएंगे। तलाशी के दौरान पूछताछ करने पर कवासी लखमा ने कहा था कि, मैं अनपढ़ हूं अधिकारियों ने गड़बड़ी करने के लिए मुझे अंधेरे में रखा। मुझे इस घोटाले के संबंध में कोई जानकारी नहीं थी।
ED ने 4 बिंदुओं में जारी की प्रेस रिलीज
ईडी ने 4 बिंदुओं पर प्रेस रिलीज जारी कर बताया है कि सीएसएमसीएल ( स्टेट मार्केटिंग कार्पोरेशन लिमिटेड) डिस्टिलर्स से खरीदे गए शराब के प्रति केस के हिसाब रिश्वत ली जाती थी। बुक में बिना हिसाब देशी शराब की बिक्री की जाती थी। शराब दुकानों से बेची गई बोतलों से मिली आय को सिंडीकेट के लोग अपनी जेब में डालते थे। वहीं शराब बनाने वालों से भी रिश्वत ली जाती थी। ताकि कार्टेल बनाने और बाजार में निश्चित हिस्सेदारी की अनुमति मिल सके। साथ ही एफएल-10ए लाइसेंस धारकों से कमीशन (जिन्हें विदेशी शराब क्षेत्र में भी कमाई) के लिए पेश किया गया था।