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कर्नाटक में किस के सिर सजेगा ताज? बीजेपी की सत्ता में वापसी या कांग्रेस को मिलेगी जीत, नतीजे थोड़ी देर में

प्रमोद मिश्रा, कर्नाटक, 13 मई 2023

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आज आने वाले हैं. हाई चार्ज्ड प्रचार अभियान के बाद बीती 10 मई को यहां मतदान हुआ था.

आज राज्य के 36 मतगणना केंद्रों पर वोटों की गिनती सुबह आठ बजे शुरू की जाएगी और चुनाव अधिकारियों के मुताबिक़, दोपहर तक स्पष्ट रुझान का पता चल सकेगा.

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, इस बार राज्य में 73.19 प्रतिशत मतदान हुआ जो कि राज्य के लिए एक रिकॉर्ड है.

ज़्यादातर चैनलों के एग्ज़िट पोल्स में अनुमान लगाया गया है कि कर्नाटक में बीजेपी हार सकती है और कांग्रेस को बहुमत मिल सकता है जबकि कर्नाटक सीएम बासवराज बोम्मई ने दावा किया कि ‘उन्हें भरोसा है कि बहुमत के साथ उनकी सरकार फिर से सत्ता में लौटेगी.’

हालांकि ये भी एक तथ्य है कि 1985 के बाद राज्य में किसी भी पार्टी की सरकार लगातार दोबारा नहीं बनी है.

त्रिकोणीय मुकाबले में एचडी कुमारस्वामी की जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) की सीटें कम आने की संभावना है और माना जा रहा है कि वो अगली सरकार में ‘किंगमेकर’ की भूमिका में आ सकती है.

पूर्ण बहुमत का जादुई आंकड़ा
224 सदस्यों वाली कर्नाटक विधानसभा में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के लिए 113 सीटों का जादुई आंकड़ा चाहिए.

मौजूदा विधानसभा में सत्तारूढ़ बीजेपी के 116 विधायक, कांग्रेस के 69, जेडीएस के 29, बीएसपी का एक और निर्दलीय दो विधायक हैं. छह सीटें खाली हैं जबकि एक स्पीकर की सीट है.

लेकिन 2018 में जब चुनाव नतीजे आए थे तो विधानसभा की तस्वीर अलग थी. बीजेपी 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. कांग्रेस को 80 सीटें और जेडीएस को 37 सीटें मिली थीं. इसके अलावा बीएसपी और कर्नाटक प्रग्यावंथा जनता पार्टी (केपीजेपी) को एक एक सीटें आई थीं.

हालांकि 38.04 वोट प्रतिशत के साथ कांग्रेस बीजेपी (36.22% वोट प्रतिशत) से आगे थी.


बीजेपी ने अपना दावा पेश किया और सरकार बन भी गई लेकिन विश्वासमत में ये सरकार गिर गई और फिर जनता दल (सेक्यूलर) और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार बनी. जेडीएस के नेता एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने.

14 महीने की ये सरकार तब गिर गई जब सत्तारूढ़ सरकार के बाग़ी विधायकों ने भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया.

बीजेपी के विधायकों की संख्या 104 से 121 हो गई और उसने सरकार बना ली. हालांकि इस दौरान भाजपा ने दो मुख्यमंत्रियों को बदला.

पहले येदियुरप्पा और फिर उनको हटाकर बासवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया.

 

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वो एक मज़बूत विपक्षी पार्टी के रूप में उभरना चाहती है और इस बुनियाद पर विपक्षी एकता दावा ठोंक सकती है.

पिछली बार कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने वाली स्थानीय पार्टी जनता दल सेक्युलर ने इस चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों से समान दूरी बनाए रखी है.

हालांकि उसके एक वरिष्ठ नेता तनवीर अहमद ने कहा है कि ‘पार्टी किसके साथ गठबंधन करेगी यह फैसला हो चुका है और सही समय पर इसकी घोषणा की जाएगी.’


चुनाव में चर्चा में ये रहे मुद्दे
कर्नाटक में फिर से वापसी करने के लिए ज़ोर लगा रही कांग्रेस पार्टी ने भ्रष्टाचार का मुद्दा ज़ोर शोर से उछाला. राज्य सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार को निशाना बनाते हुए उसने ’40 परसेंट की सरकार’ का अभियान चलाया.

साथ ही पांच वायदे किए हैं जिनमें पुरानी पेंशन बहाल करने, 200 यूनिट तक बिजली फ्री देने, 10 किलो अनाज मुफ़्त देने, बेरोजग़ारी भत्ता देने और परिवार चलाने वाले महिला मुखिया को आर्थिक मदद देने का वायदा किया है.

जबकि बीजेपी ने बीपीएल परिवारों को हर साल तीन गैस सिलेंटर मुफ़्त देने, हर ग़रीब परिवार को रोज़ाना आधा लीटर नंदिनी दूध का पैकेट देने, एससी/एसटी परिवारों के लिए 10,000 रुपये तक एफ़डी पर उतना ही पैसा जमा कराने, कर्नाटक की अर्थव्यवस्था मज़बूत करने, 10 लाख नौकरी के अवसर पैदा करने जैसे कई वायदे किए.

लेकिन प्रचार अभियान में तब एक नया मोड़ आ गया जब कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में नफ़रत फैलाने वाले संगठनों पर बैन लगाने की बात कही और उसमें बजरंग दल और पीएफ़आई का उदाहरण दिया.

बीजेपी प्रचार अभियान की अगुवाई कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे भगवान बजरंग बली का अपमान क़रार दिया और इसके बाद बीजेपी की ओर से इसे प्रमुख मुद्दा बनाया गया.

कर्नाटक चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी ने 29 अप्रैल को प्रवेश किया था और अगले हफ़्ते भर में चुनावी रैलियों, सभाओं और रोड शो से बीजेपी के चुनावी अभियान में जान फूंक दी.

मोदी की औसतन हर दिन तीन से चार चुनावी सभाएं होती थीं. अंतिम दिनों में चुनाव प्रचार का मुख्य मुद्दा बजरंग बली के इर्द-गिर्द बना रहा और कुछ प्री पोल सर्वे में बीजेपी की टैली सुधरती भी दिखी.

बहुत दिनों से चुनाव प्रचार से दूर रहीं कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी भी चुनाव प्रचार करने पहुंचीं. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी प्रचार अभियान में अपनी ताक़त लगाई.

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