“धारा 35A ने लोगों के कई मौलिक अधिकार छीने लिये” सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अनुच्छेद 370 पर सुनवाई की बड़ी बातें

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि 2019 में जम्मू कश्मीर से खत्म की गई धारा 35ए ने देश के बाकी हिस्सों में रहने वाले लोगों के मूल अधिकारों को छीन लिया था। चीफ जस्टिस ने कहा, 1954 का जो ऑर्डर है, उसके मुताबिक संविधान का भाग तीन यानी मौलिक अधिकार जम्मू कश्मीर में पूरी तरह से लागू थे। अनुच्छेद 16 और 19 के तहत आने वाले मूल अधिकार जम्मू कश्मीर के लिए लागू थे। बाद में धारा 35 ए आई। इसमें जम्मू कश्मीर के लोगों को खास अधिकार दे दिए गए मसलन राज्य की सरकारी नौकरी वहीं के लोगों को मिलेगी, जमीन वहीं के लोग खरीद सकते हैं आदि। क्या इससे देश के बाकी लोगों के अधिकार प्रभावित नहीं हुए? अनुच्छेद-19 में किसी भी नागरिक को कहीं भी रहने का अधिकार है लेकिन बाकी हिस्सों में रहने वाले लोग वंचित रह गए।

सुप्रीम कोर्ट ने उठाया कश्‍मीर में हक का मुद्दा
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए वेलफेयर वाले कानून पहले लागू नहीं हो रहे थे। अब वहां के लोग महसूस कर रहे हैं कि उन्होंने इतने दिनों में क्या खोया है। वहां अब निवेश आ रहा है, टूरिजम बेहतर हुआ है। लोगों को नौकरियां मिल रही हैं। संविधान में राइट टु एजुकेशन ऐक्ट अनुच्छेद-21ए के तहत जोड़ा गया लेकिन 2019 तक यह जम्मू कश्मीर के लिए लागू ही नहीं था। इस पर चीफ जस्टिस ने सवाल किया, प्रस्तावना में जो सेक्युलर और समाजवाद शब्द जोड़ा गया था, क्या वह जम्मू कश्मीर के लोगों पर लागू नहीं था? सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ये शब्द वहां के लिए लागू नहीं थे।

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कोर्ट में पेश होने की वजह से निलंबन हुआ तो ये परेशानी की बात’
सोमवार को अनुच्छेद 370 पर जैसे ही मामले की सुनवाई शुरू हुई, सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा – जम्मू कश्मीर के एक लेक्चरर जहूर अमहद बट्ट पिछले हफ्ते मामले की सुनवाई के दौरान पेश हुए थे। उन्होंने बहस में भाग लेने के लिए दो दिनों की छुट्टी ली थी और उसके बाद जब वापस गए तो उन्हें शिक्षा विभाग ने सस्पेंड कर दिया। ये गलत है और अटॉर्नी जनरल को इस मामले को देखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि आप इस मामले को देखें। एलजी से पता करें कि क्या हुआ है। अगर लेक्चरर का निलंबन पेशी से संबंधित है तो यह परेशान करने वाली बात है।

 

 

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