उत्तरकाशी। सिलक्यारा की सुरंग में गुजरे 12 दिन वहां फंसे श्रमिकों, उनके स्वजन और बचाव एजेंसियों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रहे। राहत व बचाव कार्य शुरू हुआ तो अड़चने आने लगीं। कभी पाइप आगे नहीं बढ़ा, तो कभी लोहे के टुकड़ों ने राह रोकी। जब बचाव का समय निकट आया, तो उम्मीद से अधिक समय लगने लगा।
इन परिस्थितियों ने श्रमिकों, उनके स्वजनों और बचाव कार्यों में लगी एजेंसियों के धैर्य की जम कर परीक्षा ली, लेकिन सभी ने अपना हौसला बनाए रखा। नतीजतन, अब सभी श्रमिक अब खुली हवा में सांस ले रहे हैं। उनके स्वजन अपनों को स्वस्थ और फिर से अपने बीच देख हर्षित हैं, तो बचाव एजेंसियों ने सुकून की सांस ली है। आखिर उनकी मेहनत जो रंग लाई है।
दिवाली वाले दिन हुआ हादसा
पूरा देश जहां 12 नवंबर को दीपोत्सव मना रहा था, वहीं सिलक्यारा में निर्माणाधीन सुरंग में भूस्खलन के कारण यहां का नजारा अलग था। स्थानीय ग्रामीणों ने इस घटना के कारण दीपावली के पूर्व में पूजा तो की लेकिन पटाखों से दूरी बनाए रखी। वहीं, सुरंग में फंसे श्रमिकों के स्वजन तक जैसे ही इसकी सूचना पहुंची, तो वे भी अपनों की सलामती को लेकर फिक्रमंद हो उठे। धीरे-धीरे स्वजन घटना स्थल पर पहुंचने लगे। साथ ही सरकार व बचाव एजेंसियां भी राहत व बचाव कार्य के लिए सक्रिय हो गई।
एनडीआरएफ की टीम मौके पर बुलाई गई और विशेषज्ञ एजेंसियों से संपर्क साधा गया। इसके साथ ही शुरू हुआ सुरंग में पाइप डालने का काम। इस बीच सुरंग में पहले से ही बिछी दो इंच की पाइपलाइन के जरिये श्रमिकों को आक्सीजन के साथ ही सूखे मेवे, चने, मुरमरों व दवाओं की आपूर्ति की गई। यह पाइप बातचीत का भी माध्यम बना। इससे बात कर ही सबसे पहले पता चला की भीतर 40 नहीं 41 श्रमिक हैं और सभी सुरक्षित हैं। सुरंग के भीतर से ही निकासी सुरंग बनाने का कार्य शुरू किया गया तो उम्मीदों की किरण दिखने लगी। यद्यपि एक बार फिर प्रकृति ने सभी के धैर्य की परीक्षा ली और 22 मीटर तक जाने के बाद इसमें 900 एमएम के पाइप डालने का कार्य रुक गया। ऐसे में सुरंग में फंसे श्रमिक व उनके स्वजन बेचैन हो उठे।
बचाव अभियान अपने अंतिम चरण में है
आज पूरी रात भी बचाव कार्य जारी रहा। इससे पहले गुरुवार को गंभीर परिस्थितियों को देखते हुए देश-विदेश से विशेषज्ञ बुलाए गए। फंसे श्रमिकों तक पहुंचने के लिए छह कार्ययोजना बनाई गई। इस बीच मुख्य सुरंग से लाइफलाइन पाइप अंदर पहुंचाया गया। इससे पका खाना और दवाएं श्रमिकों तक भेजी गईं। इससे उम्मीदें बढ़ी और हौसला मजबूत हुआ। आखिरी चरण में भी सुरंग के भीतर का कार्य प्रभावित हुआ लेकिन इससे किसी के हौसले डगमगाए नहीं।