नईदिल्ली। भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिया जाएगा. कर्पूरी ठाकुर को उनकी लोकप्रियता के कारण जननायक कहा जाता था. उनका जन्म बिहार के समस्तीपुर में हुआ था. उनकी जन्म शताब्दी के मौके की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति भवन की ओर से इसका ऐलान किया गया.
जननायक कर्पूरी ठाकुर एक स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और राजनीतिक नेता के रूप में जाने जाते थे. बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री और फिर दो बार मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर ने राजनीतिक जीवन में अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ा. इसकी वजह से वह असली हीरो बन गए.’कर्पूरी ठाकुर भारत छोड़ो आन्दोलन में कूद पड़े. उन्हें 26 महीने तक जेल में रहना पड़ा. उन्होंने 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तक और 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. कर्पूरी ठाकुर जैसा समाजवादी विचारधारा पर जीने वाला व्यक्ति अब बहुत कम ही देखने को मिलेंगे.
छात्र जीवन से थे राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले में हुआ था. वह एक नाई परिवार से ताल्लुक रखते थे. उनके पिता गोकुल ठाकुर एक किसान थे. कर्पूरी ठाकुर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. कर्पूरी ठाकुर छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय थे.
1952 में पहली बार बने थे विधानसभा सदस्य
उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और 26 महीने जेल में बिताए. जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लिया. सन 1952 में कर्पूरी ठाकुर पहली बार बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए. वो सोसलिस्ट पार्टी के टिकट पर ताजपुरी विधानसभा से चुनाव लड़े और जीते. इसके बाद वह लगातार चार बार विधानसभा के सदस्य चुने गए. सन 1967 में उन्हें बिहार के उपमुख्यमंत्री बनाया गया.सन 1970 में कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री बने. उन्होंने गरीबों और दलितों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं लागू की. कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री रहते हुए बिहार में पहली बार गैर-लाभकारी जमीन पर मालगुजारी टैक्स को खत्म किया गया