प्रमोद मिश्रा, 26 अप्रैल 2023
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से ही भारत रूस से भारी मात्रा में रियायती कीमतों पर कच्चा तेल खरीद रहा है. लेकिन अमेरिकी चेतावनी और यूएई के अपनी करेंसी दिरहम के इस्तेमाल की मनाही के बाद ऐसा लग रहा है कि दोनों देशों के बीच तेल व्यापार अंत की ओर है. रूस से तेल खरीदना भारत के लिए धीरे-धीरे ही सही लेकिन मुश्किलें खड़ी कर रहा है. पिछले सप्ताह अमेरिका की चेतावनी के बाद से भारत सरकार इस समस्या का हल खोज रही है.
भारत के लिए यह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि पिछले सप्ताह ही अमेरिका ने चेतावनी देते हुए कहा था कि हम इस बात से अवगत हैं कि कुछ रूसी तेल प्राइस कैप से ऊपर निर्यात किया गया है. सभी कंपनियां सुनिश्चित करें कि रूसी तेल का निर्यात प्राइस कैप के भीतर ही हो. यानी रूसी तेल 60 डॉलर प्रति बैरल या उससे कम कीमत पर खरीदा जाए.
दरअसल, हाल ही में रूस और तेल उत्पादक देशों के संघ ओपेक प्लस ने तेल उत्पादन में प्रतिदिन लगभग 36 लाख बैरल की कटौती की घोषणा की है. इस घोषणा के बाद से ही तेल की कीमत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. ओपेक प्लस के इस कदम के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत बढ़ गई है. ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत बढ़ने का असर यह हुआ है कि रूसी तेल की कीमत में भी बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है. इंडस्ट्री से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि भारत भी रूसी तेल का भुगतान निर्धारित प्राइस कैप से ऊपर कर रहा है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका की चेतावनी ने भारतीय रिफाइनरी कंपनियां को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि वो रूसी तेल खरीदने से पहले इसके परिणाम पर विचार करें. वहीं, इंडियन पॉलिसीमेकर के लिए भी इसका संज्ञान लेना जरूरी हो गया है, ताकि प्राइस कैप के उल्लंघन के बाद होने वाले व्यापक असर से पहले इस समस्या का समाधान निकाला जाए. क्योंकि यूएई ने भी अपनी मुद्रा दिरहम को प्राइस कैप से ऊपर खरीदे जा रहे तेल के भुगतान में इस्तेमाल करने से भारत को मना कर दिया है.
निर्यात पर लगा सकता है रोक
अमेरिकी समेत कई पश्चिमी देश दिसंबर 2022 से रूसी तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की प्राइस कैप लगाए हुए हैं. यानी 60 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर तेल आयात पर उस तेल के लिए कंपनियों को शिपिंग, बैंकिग, बीमा और वित्तीय सहायता नहीं दी जाएगी.
वर्तमान में भारतीय रिफाइन कंपनियां रूसी तेल के भुगतान के लिए दिरहम मुद्रा का इस्तेमाल करती हैं. लेकिन पिछले कुछ दिनों से अमेरिका और ब्रिटेन ने यूएई पर दबाव बनाया है. जिसके बाद यूएई ने भारतीय रिफाइन कंपनियों को स्पष्ट रूप से कह दिया है कि उनके बैंकों या मुद्रा का उपयोग प्राइस कैप से अधिक कीमत वाले रूसी तेल के भुगतान के लिए नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा, अमेरिका ने यूएई से रूसी कंपनियों और बैंकों को लाइसेंस देने से भी मना करने के लिए कहा है.
हालांकि, भारत ने कोशिश की कि रूस को रुपए में भुगतान किया जाए. लेकिन रूसी बैंक भारतीय रुपये में व्यापार करने से कतराते हैं क्योंकि भारत से रूस का आयात उस अनुपात में नहीं है, जिस अनुपात में रूस से भारत का. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी पिछले सप्ताह एक एवेंट में कहा था कि रूस के साथ तेल व्यापार में आने वाली प्रमुख समस्याओं में से प्रमुख समस्याएं- भुगतान, लॉजिस्टिक और सर्टिफिकेशन हैं.
अमेरिकी चेतावनी के बाद भारतीय तेल कंपनियां सतर्क
भारत ने इससे पहले रूसी तेल पर लगाए गए प्राइस कैप को मानने से इनकार कर दिया था. लेकिन वर्तमान में प्राइस कैप पर जी-7 देशों एवं अमेरिका की बढ़ती निगरानी ने भारत को सोचने पर मजबूर कर दिया है. दिसंबर 2022 में जी-7 देशों ने लॉडिंग पॉइंट पर 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक कीमत वाले रूसी तेल के निर्यात पर रोक लगा दी थी.