धनेश्वर बंटी सिन्हा
धमतरी- 14 मई
अक्षय तृतीया अक्तिपर्व पर भारत देश के अलग अलग राज्यों में अपनी संस्कृति ‘ रीति रिवाज एव परंपरा के अनुसार पूजा अनुष्ठान की परम्परा है। परन्तु छतीसगढ मे प्रकृति से संबंधित देव संस्कृति है यहां लोग अपने अपने हिसाब से अपनी इष्ट देव की उपासना करते हैं जन आस्था का केंद्र छत्तीसगढ़ में देवी देवताओं की सामूहिक रूप से पूजा अनुष्ठान करने की प्रक्रिया है वैशाख शुक्ला पक्ष के तृतीयाके दिनअक्षय तृतीया पर्व मनाने की बरसो से परंपरा चली आ रही है ।यह पूर्व बसंत ऋतु की
समाप्ति और ग्रीष्म ऋतुके आगमन का सूचक है ।अक्षय का अर्थ कभी नष्ट नहीं होने वाला है ‘ ।अक्ति के दिन जो भी कार्य करेंगे वह फलदाईहोकर अक्षय फल की प्राप्ति होती है । पुराणों में स्पष्ट मान्यता है की इस दिन कोई भी कार्य करने मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती ।पुराणों के लेख के अनुसार ब्रह्मा जी का पुत्र अक्षय इसी दिन प्रकटहुए ऋषि वेद ब्यास और श्री गणेश के साथ महाभारत की कथा इसी दिन से लिखना प्रारंभ की थी ।भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से परशुराम एवं नर नारायण और हयग्रीव तीनों इसी दिन धरा पर अवतरित हुए थे ।भक्त सुदामा के हाथों भगवान कृष्ण ने चावल की पोटली खोलकर इसी दिन खाया था ।कहां जाता है की सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत भी इसी दिन से मानी जाती है। आज के ही दिन मां गंगा का ” अवतरण इस धरती पर हुआ था ।द्रोपदी को चीरहरण से श्री कृष्ण ने आज के ही दीन बचाया था ।मां अन्नपूर्णा का जन्म भी आज ही के दिन हुआ था ।कुबेर को आज के ही दिन खजाना मिला था ।प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्रीनारायण जी का कपाट आज ही के दिन खोला जाता है /वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में साल में केवल आज ही के दिन श्री विग्रह चरण के दर्शन होते हैं अन्यथा साल भर से वस्त्र से ढके रहते है। ज्योतिष के अनुसार वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त माने जाते हैं उनमें अक्षय तृतीया को प्रमुख स्थान दीया गया है | शास्रोक्तमुहूर्त है -1, चैत्र शुक्ल पक्ष गुड़ी पड़वा, 2, बैशाख शुक्लपक्ष अक्षय तृतीया 3, आश्विन शुक्ल पक्ष विजयादशमी तथा दीपावली की पड़वा का आधा दिन होता है ।ग्रामीणों का कहना है कि अक्षय तृतीया के दिन पितरों में पिंड दान व तर्पण करने से पितरों की मुक्ति होती है ।ऐसी मान्यता है की मनुष्य की मृत्यु होने के बाद अक्षय तृतीयाके दीन पितरों में मिलाया जाता है अक्ति के दिनगांव के ग्रामीण देव ठाकुर देवता की पूजा की पुरानी परंपरा है ।गांव के ठाकुर देव में गांवोंके प्रत्येकघर परसा पान के दोना में धान भरकर चढ़ाया जाता है ।पूजा के पूर्व गांव में सभी दैनिक कार्य में प्रतिबंध की प्रथा है |पूजा के पूर्व गांव में कोई पानी भी नहीं भरते हैं ।गाजे बाजे के साथ गांव के बैगा द्वारा ठाकुर देव मैं रखा पैरा से बने लोटनामैं रखें धान को ठाकुर देव मैं धान बुवाई , निंदाई, मिसाई कर सभी को बांट देते है । उसीधान को किसान सम्मान पूर्वक घर ले जाते हैं तथा खेतों में धान बोनेंकी मुहूर्त की शुरुआत की जाति है। ग्रामीण क्षेत्र में निवासरत आदिवासी समाज ध्रुव , गोंड़के लोग अक्षय तृतीय पर्व मनाने की अलग परंपरा है / I अक्तिमनाने के बाद से साजा वृक्ष का दातुन नहीं करते परसा पान, तोरई फल, कोचई कंद, कुम्हड़ा फलआदि का जब तक दीपावली मे गौवमाता को खिचड़ी नहीं खिलाते तब उसका खाने में उपयोग नहीं करते हैं ।इसी दिन बच्चों मे गृहस्थ जीवन की जानकारी के लिए पुतरा – पुतरी की विवाह की परंपरा है गांव मैं बच्चे इस पर्व को बड़ी धूम धाम से मनाते हैं ।