कवासी लखमा के वीडियो पर बीजेपी नेताओं का हमला : वायरल वीडियो में कवासी लखमा सुरक्षा बल के जवानों को बता रहे बलात्कारी, बीजेपी नेताओं का ट्वीट – ‘मुखिया जी CRPF को कोसते हैं, मंत्री सुरक्षाबलों को हत्यारा-बलात्कारी बोलते हैं’

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प्रमोद मिश्रा

रायपुर, 30 नवंबर 2022

छत्तीसगढ़ के आबकारी मंत्री कवासी लखमा एक बार फिर विपक्ष के निशाने पर हैं । इस बार उनके एक बयान के चलते बीजेपी के नेता उनपर हमला बोल रहे हैं । दरअसल, कवासी लखमा का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें कवासी लखमा चुनाव प्रचार के दौरान लोगों को संबोधित करते कह रहे हैं कि सुरक्षाबल के जवान ग्रामीणों को पीटते थे, सुरक्षाबल के जवानों ने ताड़मेटला में जवानों ने ग्रामीणों के घर जलाए और लड़कियों से बलात्कार किया ।

 

 

 

कवासी लखमा के इस वायरल वीडियो को लेकर अब बीजेपी के नेता आक्रामक हो गए हैं । छत्तीसगढ़ राष्ट्रवादी संघ के द्वारा इस वीडियो को लेकर सोशल मीडिया में कई तरह के कमेंट्स भी आ रहे हैं । आपको बताते दे कि मीडिया24 न्यूज़ इस वीडियो की सत्यता को प्रमाणित नहीं करता है ।

इस वायरल वीडियो को लेकर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने भी तंज कसा है । अरुण साव ने ट्वीट कर लिखा है कि

 

आपको बताते चले कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ताड़मेटला न्यायिक जांच आयोग की रिपाेर्ट विधानसभा में पेश की थी। इस रिपोर्ट में आयोग ने यह तो बताया है कि सुकमा जिले के ताड़मेटला, मोरपल्ली और तिम्मापुरम गांवों में आदिवासियों के 250 घरों को जला दिया गया था। घरों को किसने जलाया, यह 11 साल की जांच के बाद भी न्यायमूर्ति टीपी शर्मा का आयोग नहीं बता पाया। अब उन्होंने स्थिति स्पष्ट करने की बात सीबीआई जांच के नतीजों पर डाल दिया है।

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विधानसभा में पेश आयोग की रिपाेर्ट बताती है, 11 मार्च 2011 को मोरपल्ली गांव में पुलिस, सीआरपीएफ और कोबरा बटालियन के साथ नक्सली भी मौजूद थे। वहां पुलिस की नक्सलियों के साथ मुठभेड़ हुई। मोरपल्ली गांव में 31 मकानों का जलना बताया गया, जिसकी वजह से ग्रामीणों को नुकसान हुआ। मकान पुलिस ने जलाए या नक्सलियों ने यह तथ्यात्मक रूप से प्रमाणित नहीं हुआ। इस सीरीज के दूसरे गांव तिम्मापुरम में 13 मार्च 2011 को पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई। यह मुठभेड़ इतनी तीव्र थी कि पुलिस बल के पास गोला-बारूद खत्म हो गए। हेलिकाप्टर से कोबरा बटालियन और सीआरपीएफ को वहां उतारा गया। इस मुठभेड़ में तीन पुलिस कर्मी शहीद हुए और एक अज्ञात नक्सली मारा गया। 8 पुलिस कर्मी गंभीर रूप से घायल हुए। आयोग ने इन घायलों का बयान भी रिपोर्ट में शामिल किया है। तिम्मापुरम गांव में 59 मकानों में आग लगी। जिनमें से एक किनारे के चार-पांच मकान पुलिस के ग्रेनेड दागे जाने से जले थे। इन मकानों से पुलिस पर गोलीबारी हो रही थी। शेष मकान किसने जलाए यह पता नहीं। 16 मार्च को ताड़मेटला गांव में पुलिस, सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन की संयुक्त टीम के साथ नक्सलियों की मुठभेड़ हुई। यहां पर 160 मकान जलाए गए। ये मकान पुलिस ने जलाए या नक्सलियाें ने यह प्रमाणित नहीं पाया जाता। आयोग का कहना है कि इस मामले की जांच सीबीआई भी कर रही है। उनकी जांच के बाद अभियोगपत्र में स्थिति स्पष्ट हो सकेगी।

इस नतीजे पर कैसे पहुंचा आयोग

आयोग का कहना है, स्थानीय सरकारी अधिकारियों और पटवारी की गवाही में यह तथ्य आया है कि इन गांवों में मकान दूर-दूर बने हैं। वहां घनी आबादी नहीं है। गवाही में यह बात प्रमाणित हुई है कि जिस गांव में एक भी नक्सली मौजूद है वहां पुलिस नहीं जा सकती। नक्सली क्षेत्र में तो पुलिस 50 लोगों के साथ भी नहीं जा सकती। उसे अधिक बल के साथ जाना होगा। मुठभेड़ के दौरान जो पुलिस बल बार-बार चिंतलनार लौट रहा था, वह गांव में घूम-घूमकर मकान जलाने का जोखिम नहीं ले सकता। पहले भी पुलिस ने कभी कोई मकान नहीं जलाया था। इन्हीं के आधार पर आयोग ने मान लिया कि पुलिस ने आगजनी नहीं की। पुलिस ने कहा था कि नक्सलियों ने आग लगाई, लेकिन उसको भी प्रमाणित नहीं माना गया।

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IG कल्लूरी ने उसे लिबरेटेड जोन बताया था

आयोग के सामने अपनी गवाही में तत्कालीन एसएसपी एसआरपी कल्लूरी ने उस क्षेत्र को नक्सलियों का लिबरेटेड जोन बताया था। अपने निष्कर्षों में आयोग बार-बार इस कथन का हवाला देता है। कल्लूरी का उल्लेख करते हुए कहा गया है, लिबरेटेड जोन में पुलिस और प्रशासन की पहुंच नहीं है। प्रशासन का अस्तित्व नहीं है। नक्सलियाें द्वारा जनताना सरकार चलाया जाता है, जिनमें उनके कलेक्टर, उनके पुलिस अधिकारी होते हैं। वे अपना शासन जन मिलिशिया संघम के माध्यम से चलाते हैं।

 

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