प्रमोद मिश्रा
रायपुर, 31 मई 2022
आज विश्व तम्बाकू निषेध दिवस है । ऐसे में यह जानना जरूरी है कि हमारेके प्रदेश छत्तीसगढ़ में लोग कितना तंबाकू का उपयोग करते हैं । जब आपको लता चलेगा आपको आश्चर्य होगा कि इतनी तादाद में लोग कैसे गुड़ाखू, सिगरेट,बीड़ी और अन्य तंबाखू का सेवन करते हैं । छत्तीसगढ़ में ग्रामीण इलाकों में तंबाकू सेवन करने वाले पुरुषों की संख्या 46 प्रतिशत हो गई है, अर्थात लगभग आधे पुरुष किसी न किसी रूप में तंबाकू उत्पाद का सेवन कर रहे हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की पांचवीं रिपोर्ट के मुताबिक गांवों में तंबाकू सेवन करने वाली महिलाओं की संख्या भी 19.6 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
इनमें ज्यादातर मामले गुड़ाखू के सेवन से जुड़े हैं। प्रदेश के एकमात्र रीजनल कैंसर संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक मुंह के कैंसर के अधिकांश मामले गुड़ाखू की वजह से आ रहे हैं। इधर, राष्ट्रीय स्तर पर हुए एक अन्य रिसर्च ने तंबाकू के मामले में पहली बार इसके हानिकारक कचरे पर फोकस करते हुए खुलासा किया कि देश में 170331 और छत्तीसगढ़ में 4567 टन कचरा निकल रहा है।
इसे नष्ट करने का प्रदेश में सिस्टम नहीं है, इसलिए यह पर्यावरण के लिए भी गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। यही नहीं, इस कचरे में जो तत्व मिले हुए हैं, अगर तंबाकू प्रोडक्ट में उनका इस्तेमाल नहीं होता तो बचने वाला एल्यूमिनियम, प्लास्टिक और पेपर दूसरे इस्तेमाल में आ सकते थे।
कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे
छत्तीसगढ़ में ओरल कैंसर यानी मुंह और गले के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। राज्य के सबसे बड़े कैंसर संस्थान रायपुर के आंकड़े बताते हैं 15 से 44 साल की उम्र में बीते पांच साल में तेजी से मुंह और गले का कैंसर बढ़ा है। इसमें भी गुड़ाखू करने वालों की संख्या बहुत अधिक है।
मुंह के कैंसर वाले मरीजों के सर्वे में यह बात सामने आई कि ज्यादातर मरीज गुड़ाखू का दिन में कई बार सेवन करने वाले हैं, और वह ज्यादा खतरे में हैं जो गुड़ाखू करने के बाद सो जाते हैं और ऐसा करीब दस साल से करते आ रहे हैं। करीब 20 साल से छत्तीसगढ़ में कैंसर के मरीजों के इलाज में लगे प्रदेश के एकमात्र कैंसर रीजनल सेंटर के डायरेक्टर डा. विवेक चौधरी के अनुसार पिछले पांच-सात साल में युवाओं में मुंह और गले के कैंसर के मामले बढ़े हैं और ज्यादातर का कारण तंबाकू का सेवन ही है।
कचरा भी घातक – इको सिस्टम के लिए खतरा बन रहा तंबाकू का कचरा
छत्तीसगढ़ में 39.1 प्रतिशत लोग किसी न किसी रूप में तंबाकू और इससे बने उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं। बीड़ी, सिगरेट पीकर इसके आखिरी का हिस्सा और गुटका खाकर पाउच कहीं भी फेंक रहे हैं और आश्चर्यजनक है कि यही फेंका हुआ टुकड़ा, जिसके बारे में कोई नहीं सोचता, अकेले पूरे प्रदेश में एक साल में 4567.36 टन और देश में 170331 टन कचरा पैदा कर रहा है।
जिससे यह पर्यावरण के लिए भी खतरा बन रहा है। इसमें से सिगरेट के टोटे यानी फिल्टर का हिस्सा तो खतरनाक है ही, फेंके गए तंबाकू उत्पादों में जो मटेरियल इस्तेमाल हुआ है, अगर वह नहीं हुआ होता तो कितना लाभदायक रहता, इसे जोधपुर एम्स और द यूनियन साउथ एशिया ने लंबे रिसर्च के बाद साबित किया है। इस रिसर्च से छत्तीसगढ़ ने अपने काम का हिस्सा अलग निकाला है।
जिसके मुताबिक प्रदेश में सिगरेट के पैकेट से निकलने वाली चमकीली पन्नी (फॉइल वेस्ट) इतनी निकल रही है कि इसका एल्यूमिनियम एक छोटा विमान बनाने के लिए काफी है। इसी तरह, गुटखा तथा अन्य तंबाकू उत्पादों का प्लास्टिक अगर पाउच वगैरह बनाने में इस्तेमाल नहीं होता तो इससे 20 लाख से अधिक प्लास्टिक बाल्टियां बन सकती हैं।
यही नहीं, सिगरेट-गुटखे से निकलनेवाले पेपर वेस्ट से सिर्फ छत्तीसगढ़ में 2.50 करोड़ नोटबुक बनाई जा सकती थीं। यह शोध 17 राज्यों के 72 जिलों को शामिल किया गया है, जिसमें छत्तीसगढ़ के जिले भी हैं। अपनी तरह की यह पहली रिपोर्ट है जो यह बता रही है कि यह कचरा हमारे पर्यावरण के लिए कितना नुकसानदायक है, क्योंकि यह कचरा आसानी से नष्ट नहीं होता।
बचाव के प्रयास- स्कूलों में शिक्षक-कर्मियों का तंबाकू सेवन प्रतिबंधित
नए शिक्षा सत्र से राज्य के स्कूलों में तंबाकू और इससे बनी चीजों पर बैन होगा। शिक्षक व स्टाफ तंबाकू, बीड़ी-सिगरेट या गुटखों का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। इसे लेकर प्राचार्यों को कहा गया है कि यदि उनके स्कूल में कोई टीचर या स्टाफ को तंबाकू या इससे बनी चीजों की लत है तो वे काउंसिलिंग कर इसे छुड़वाएं।
पहली बार इस बड़े मिशन में प्राइवेट स्कूलों को भी शामिल किया गया है। इसके लिए वहां नोडल अधिकारी भी बनाए जाएंगे। स्कूलों में नोटिस बोर्ड व बोर्ड भी लगाए जाएंगे। इस पर गैर धूम्रपान मुक्त इलाका लिखा होगा। ताकि वहां कोई बीड़ी- सिगरेट या तंबाकू का उपयोग न कर सके। यह टारगेट पूरा करने वाले स्कूलों को 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर प्रमाणपत्र देकर प्रोत्साहित किया जाएगा।
गांव की अपेक्षा शहरों में तंबाकू सेवन कम
शहरी इलाकों में तंबाकू का सेवन करने वालों की संख्या चौथे सर्वे से कम पाई गई है। चौथे सर्वे के दौरान शहरी इलाकों में 17.3 प्रतिशत महिलाएं और 43.1 प्रतिशत पुरुष तंबाकू का सेवन कर रहे थे। वहीं पांचवें ताजा सर्वे में इस संख्या में कमी पाई गई है। पांचवें सर्वे में शहरों में 15 साल से अधिक उम्र में तंबाकू का सेवन करने वाली महिलाओं की संख्या घटकर 9.4 % पर आ गई है। वहीं पुरुषों की संख्या कम होकर 33.4 % रह गई है। दोनों में तुलनात्मक रूप से कमी दर्ज की गई है।